गेहू फसल की कटाई के बाद बचे हुए डंठल तथा भूसा, तना तथा जमीन पर पड़ी हुई पत्तियों आदि को फसल अवशेष कहा जाता है। विगत एक दशक से खेतीहर मजदूरों की कमी की वजह से खेती में मशीनों का प्रयोग बढ़ा है। साथ ही भी यह एक आवश्यकता बन गई है। ऐसे में कटाई व गहराई के लिए कंबाईन हार्वेस्टर का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है, जिसकी वजह से भारी मात्रा में फसल अवशेष खेत में पड़ा रह जाता है। जिसका समुचित प्रबन्धन एक चुनौती है।आइये जानते हैं फसल अवशेष के प्रबंधन के बारे में---
गेहू फसल अवशेष प्रबन्धन के तरीके
अभी तो मुख्यतः पशुचारा के लिए कुछ अवशेष इकट्ठा करने के उपरान्त शेष को जलाया जा रहा है जिससे पर्यावरण, मनुष्य एवं पशु स्वास्थ्य की हानि हो रही है। अवशेष प्रबन्धन विकल्प इस प्रकार हो सकते हैः
1. अवशेषों को पशुचारा के लिए इकट्ठा करना ।
गेहू के डंठल का पशु चारे(प्रचलित नाम भूसा )के रूप में प्रयोग करना खेत में पड़े फसल अवशेषों (गेहू के तनो,बालियों) का स्ट्रों बेलर द्वारा ब्लॉक बनाकर कम जगह में भंडारित कर, रीपर का प्रयोग कर भूसा बनाकर चारे में उपयोग करना।
2 अवशेषों को औद्योगिक उपयोग के लिए इकट्ठा करना
गेहू के फसल अवशेषों से गत्ता ,दफ़्ती,मूर्ति आदि बनाकर भी फसल अवशेषो का प्रबंध करके लाभ भी कमाया जा सकता है, जिससे किसानों की आय भी बढ़ेगी ।
3.गेहू के फसल अवशेषों को,कृषि यंत्रो सहायता से मिट्टी में मिश्रित करना
फसल की कटाई के उपरांत,खेतो की रोटावेटर से जुताई करना,एवम एक बार जल भराव कर 20-35 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हे. की दर से डाल देने से अवशेषों के विगलन की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है।ऐसा कर देने से फसल अवशेष मिट्टी में मिलकर मिट्टी में पोषक तत्त्व मि पूर्ति करते हैं,जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ-साथ उत्पादन दक्षता भी बढ़ जाती है।
4. अवशेष के भूमि के सतह पर रखना
गेहूँ की कटाई के बाद खड़े फानो में जीरो टिलेज मशीन या टबों हैप्पी सीडर से मूँग या ढैंटा की बुआई कर फसल अवशेष प्रबन्धन सम्भव है।
गेहू फसल अवशेष जलाने से मृदा की प्रमुख हानियाँ
- जमीन की ऊपरी सतह पर रहने वाले मित्र कीट जैसे केंचुआ आदि नष्ट हो जाते हैं।
- भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रासः अवशेष जलाने से 100 प्रतिशत नत्रजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत। पोटाश और 60 प्रतिशत सल्फर का नुकसान होता है।
- भूमि की संरचना में क्षति होने से जब पोषक तत्वों का समुचित मात्रा में स्थानान्तरण नहीं हो पाना तथा अत्यधिक जल का निकासी न हो पाना।
- भूमि के कार्बनिक पदार्थों का ह्रास होता है।फसल अवशेषों से मिलने वाले पोषक तत्वों से मृदा वंचित रह जाती है।
मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव--
सांस से सम्बन्धित बीमारियों अस्थमा और दमा के मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है ।साथ ही इन रोगों के मरीजों की संख्या भी बढ़ती है।
फसल अवशेष के धुएं से निकलने वाले सल्फर डाईऑक्साइड व नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण आँखों में जलन एवम चर्म रोग की शिकायत बढ़ जाती है।
पर्यावरण सम्बन्धी दुष्परिणाम
- यह वैश्विक तपन (ग्लोबल वार्मिंग) को बढ़ाता है।
- स्मॉग जैसी स्थिति पैदा हो जाती है जिससे सड़क पर दुर्घटना होती है।
- फसल अवशेष के साथ-साथ खेत के किनारे के पेड़ों को भी आग से नुकसान पहुँचता है।
- ओजोन परत का ह्रास होता है।