नई दिल्ली: पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली का 66 साल की उम्र में निधन हो गया है. उनको बीते 9 अगस्त को दिल्ली के एम्स में भर्ती करवाया गया था. उस समय उनको सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. लेकिन अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनकी हालत लगातार बिगड़ती चली गई. कुछ साल पहले ही उनकी बैरियाट्रिक सर्जरी की गई थी. बता दें कि पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली (Arun Jaitley) की हालत बीते शुक्रवार को ही बिगड़ गई थी. अरुण जेटली को सांस लेने में तकलीफ को लेकर नौ अगस्त को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था. उनका बीते गुरुवार को डायलसिस किया गया था. शुक्रवार को भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष उमा भारती ने एम्स पहुंचकर अरुण जेटली के स्वास्थ्य की जानकारी ली। इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित कई वरिष्ठ नेता एम्स पहुंचकर जेटली का हालचाल ले चुके हैं.
आपको बता दें कि सांस लेने में तकलीफ और बेचैनी की शिकायत के बाद नौ अगस्त को उन्हें एम्स में भर्ती किया गया था. इस साल मई में जेटली (Arun Jaitley) को इलाज के लिये एम्स में भर्ती कराया गया था. जेटली पेशे से एक वकील हैं और वह भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल का अहम हिस्सा रहे थे. उन्होंने वित्त एवं रक्षा दोनों मंत्रालयों का कार्यभार संभाला था और उन्होंने प्राय: सरकार के प्रमुख संकटमोचक के तौर काम किया.
70 के दशक से मुड़कर पीछे नहीं देखा
अरुण जेटली का पूरा नाम अरुण महाराज किशन जेटली है। sixty six साल के अरुण जेटली की छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि रही और 1973 के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट जेवियर कालेज के विद्यार्थी जेटली ने श्रीराम कालेज से बीकाम में दाखिला लिया। बीकॉम करने के बाद वह दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी में प्रवेश लिया और 1977 में लॉ ग्रेजुएट की डिग्री पाने से पहले अरुण जेटली ने राजनीति में भी काफी कुछ हासिल कर लिया था, वह अखिल भारतीय विद्याथी परिषद से भी जुड़े थे।
1974 में चुने गए दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष
1974 में वह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए और 1975-77 के दौरान वह देश में लगे आपात काल के दौरान प्रीवेंशन और आफ डिटेंशन का सामना करने वाले भी बने। जेल से रिहा हुए तो जनसंघ के सक्रिय सदस्य बने। राजनरायण और जय प्रकाश नारायण के शुरू किए आंदोलन में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले बने। जयप्रकाश जी द्वारा बनाई गई नेशन कमेटी फॉर स्टूडेंट के संयोजक भी बनाए गए। लेकिन इसके बाद अरुण जेटली ने अपना ध्यान प्रोफेशनल कॉरियर बनाने में लगाया।
हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में वकालत
80 के दशक में अरुण जेटली ने देश के विभिन्न हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में बतौर वकील अपनी पहचान बनाई। जनवरी 1990 में वह दिल्ली हाईकोर्ट के नामित वरिष्ठ अधिवक्ता बने। 1989 में तत्कालीन वीपी सिंह की सरकार ने जेटली को देश का एडिशनल सॉलीसीटर जनरल बनाया। वकालत के कॉरियर में जेटली शरद यादव (तब जनता दल), लालकृष्ण आडवाणी (भाजपा), माधव राव सिंधिया (कांग्रेस) के वकील रहे। तमाम नामी कंपनियों के वकील रहे और अपनी जगह बनाई।
फिर लौटे राजनीति की तरफ
वकालत के करियर को धार देने के बाद अरुण जेटली ने फिर राजनीति की तरफ समय देना शुरू किया। 1991 में वह भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुए। 1999 में अरुण जेटली को पार्टी ने राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया। लोकसभा चुनाव के बाद देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए के बैनर तले भाजपा सत्ता में आई। अटल जी के नेतृत्व वाली इस सरकार में अरुण जेटली को सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मिला। वह विनिवेश राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी बने। बाद में, जेटली को विधि एवं न्याय मंत्रालय में मंत्री बनाया गया और नवंबर 2000 में तत्कालीन कानून मंत्री राम जेठमलानी के त्यागपत्र देने के बाद जेटली को केंद्रीय कानून मंत्री की जिम्मेदारी मिली। 2002 में जेटली फिर भाजपा के संगठन में चले गए 2003 में फिर वाजपेयी मंत्रिमंडल में शामिल हुए। इस बार उन्हें वाणिज्य मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया।
2009 से भरी राजनीतिक उड़ान
जून 2009 में अरुण जेटली राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बने। जेटली ने राज्यसभा में नेता विपक्ष के तौर अपनी सूझ-बूझ और राजनीतिक कौशल का शानदार प्रदर्शन किया। कहा जाता 2013 में वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में सशक्त तरीके से लाने वाले प्रमुख रणनीतिकारों में थे। पर्दे के पीछे रहकर जेटली ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए केंद्रीय राजनीति में तमाम मोहरे फिट करते रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद जेटली ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाई। 2014-19 तक केन्द्र सरकार के संकट मोचक बने रहे।
2014 से धोखा देता रहा स्वास्थ्य
अरुण जेटली का स्वास्थ्य 2014 से उन्हें धोखा देता रहा। अनियंत्रित डायबिटीज से निजात पाने के लिए सितंबर 2014 में गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी कराई। इसके कुछ समय बाद मई 2018 में जेटली को किडनी की बिमारी से परेशान होकर किडनी ट्रांसप्लांट के दौर से गुजरे। 2019 के जनवरी महीने में उन्हें एक और गंभीर बिमारी ने घेर लिया। वह साफ्ट टिश्यू कैंसर की गिरफ्त में आ गए। स्वास्थ्य वजहों के चलते जेटली ने 2019 में दोबारा सत्ता में आने पर मोदी सरकार की कैबिनेट में न जाने की इच्छा जताई। पिछली nine अगस्त से वे एम्स के गहन चिकित्सा कक्ष में गंभीर आवस्था में भर्ती थे।
पंजाबी खाने के शौकीन, लड़े बस एक लोकसभा चुनाव
पंजाबी खाने के शौकीन अरुण जेटली ने जीवन में केवल एक बार लोकसभा का चुनाव लड़ा। 2014 में उन्होंने अमृतसर से कांग्रेस पार्टी के कैप्टन अमरिंदर सिंह को चुनौती देने की ठानी, लेकिन चुनाव हार गए। नरम मिजाज में रहकर गंभीर फैसले लेने वाले जेटली को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बेहद करीबी माना जाता है। बताते हैं कि अरुण जेटली को भी ओवर ईटिंग की आदत थी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे लेकर हमेशा संवेदनशील रहते थे।
वह जेटली की इस आदत से उन्हें बाहर लाने के लिए जेटली की पत्नी और बेटी से बात करके उन्हें जिम्मेदारी सौंपते थे। जानकार बताते हैं कि जेटली को अमृतसारी नॉन, छोले-भटूरे, छोले-कुल्चे काफी अच्छे लगते थे। बताते हैं जेटली के स्वादिष्ट खाने की पसंद के चलते उनकी डायबिटीज करीब दस साल तक अनियंत्रित रही