शुभम तिवारी (शोध छात्र)


शांति के हर प्रयास को इस कुटिल कौरव ने छल से कुचला है।

ये वही गजनी, गोरी प्रवृत्ति है जिसने अतीत में गायों को ढाल, और स्त्रियों को कवच बना धर्म के खिलाफ अधर्म का युद्ध लड़ा था।


रामचरितमानस में  प्रातः स्मरणीय तुलसीदास जी चेताते हैं - 

"सठ सुधरहिं न प्रीति बिनु, भय बिनु नहिं प्रीत।

बिनु प्रीति भय होइ नहीं, विनय न मान खल कीत॥"

(दुष्ट न प्रेम से सुधरते हैं, न विनय से; उन्हें केवल दंड ही रास्ते पर लाता है।)


तो क्या बार-बार छल सहें?

नहीं! अब श्री राम जी जैसा निर्णय लेना होगा।


जिस दिन भारत ने यह ठान लिया कि

"अब कीजै निपट निपात।

शठ सुधरहिं न पारिनहिं प्रीति , विनय न सज्जन जानत भीति॥"

(दुष्ट विनय से, प्रेम से या ज्ञान से नहीं, सिर्फ दंड से सुधरते हैं)

 

उसी दिन निर्णायक विजय की आधारशिला रखी जाएगी।


अब यह सवाल नहीं रह गया कि "क्या युद्ध होगा?"

अब यह तय करना है - 

"कब और कैसे, ताकि निर्णायक हो?"

शांति तभी पवित्र होती है जब उसका आधार धर्म और न्याय हो,

छल और आतंक के साथ नहीं।

क्या अब समय आ गया है?

जब दुश्मन शांति को कमजोरी समझे,

जब हर सीज़फायर के पीछे छुपा हो कोई साज़िश,


जब हर बातचीत के बाद सीमा पर लहू बहाया जाए—

तो युद्ध सिर्फ उत्तर नहीं, कर्तव्य बन जाता है।


“मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी ने भी युद्ध का मार्ग तब चुना जब मर्यादा का अपमान हुआ।

अब भारत को भी रामधनुष उठाना होगा।”

भारत अब निर्णायक मोड़ पर है—

युद्ध होगा – क्योंकि अब रण ही शांति का एकमात्र रास्ता है।

पाकिस्तान को अब वही उत्तर चाहिए जो राम ने रावण को दिया था , भगवान श्रीमुरलीधर ने कौरवों को दिया था - 

शक्ति से, धर्म से, और निर्णायक युद्ध से!


“जब शांति को कायरता समझा जाए,

    तब रण ही धर्म होता है।”

      जयतु भारतम , वंदे भारत मातरम