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गाज़ीपुर जनपद (उत्तर प्रदेश) के रायपुर गाँव की शांत-सुखद मिट्टी में 8 फ़रवरी 1991 की सुबह एक ऐसा बालक जन्मा, मानो किसी भोर की किरण ने मिट्टी में आशा का बीज रोप दिया हो। उस क्षण कोई नहीं जानता था कि यह साधारण-सा लगने वाला बालक आने वाले समय में संघर्ष, संकल्प और साधना की वह कथा गढ़ेगा, जिसे लोग मार्गदर्शक की तरह पढ़ेंगे। उसके जन्म के साथ मानो गाँव की हवा में एक मौन संकेत तैर गया मानो इस बालक की चाल में भविष्य की राहें छिपी हैं और उसकी आँखों में सपनों का एक शांत दीप जल रहा है।

चार पुत्रों और दो पुत्रियों के बीच सबसे छोटे तेज बहादुर मौर्य बचपन से ही ऐसी नैसर्गिक प्रखरता लिए हुए थे, जैसे किसी शांत झरने के भीतर गहराई से बहती बुद्धि की धारा हो। उनका स्वभाव संयमित, विचार परिपक्व और व्यवहार सौम्य था। गाँव के लोग उन्हें प्रेम-पूर्वक “गांधी जी” और “बुद्ध जी” कहकर पुकारते थे, क्योंकि उनके शब्दों में करुणा की मधुरता और निर्णयों में विवेक की स्पष्टता दिखती थी। उनकी आँखों में एक ऐसी मद्धिम पर दृढ़ चमक रहती थी, मानो वह वर्तमान के पन्नों को केवल पढ़ते ही नहीं, भविष्य के अध्यायों को भी समझ रहे हों।

जैसे ही उसकी उम्र ने दस वर्षों की दहलीज़ छुई, 11 जुलाई 1999 का दिन अचानक जीवन में एक ऐसा अध्याय बनकर आया जिसने पूरे परिवार की दिशा ही बदल दी। पिता चंद्रिका कुशवाहा का परिनिर्वाण उस घर के लिए किसी तूफ़ान की पहली गूँज जैसा था, एक ऐसा क्षण जिसने समय को दो हिस्सों में बाँट दिया। घर का आकाश मानो एक ही पल में सूना हो गया; आर्थिक कठिनाइयाँ, बढ़ती जिम्मेदारियाँ और भविष्य का अनिश्चित सन्नाटा एक साथ खड़े दिखाई देने लगे। माँ धानपति देवी ने उस शोक के बीच अपने छह बच्चों का हाथ थाम लिया, जैसे किसी टूटी नाव को डूबते जल में माँ के साहस ने किनारे की ओर मोड़ दिया हो। बड़ी बहनों और बड़े भाइयों ने भी उसी क्षण परिवार की डोर अपने हाथों में ले ली; किसी दीपक की लौ की तरह, वे आँधी में झुक तो गए, पर बुझे नहीं। उन्होंने घर को बिखरने नहीं दिया, बल्कि अपने त्याग और एकजुटता से उसे संभाले रखा।

पिता के परिनिर्वाण के बाद यह परिवार अभावों के बीच भी ऐसी अद्भुत एकता में ढल गया, जैसे कोई टूटा हुआ तंबूरा फिर भी एक ही सुर में गूँजने लगे। कुछ वर्षों के भीतर बड़े भाई ने परिवार की जिम्मेदारियों को इस दृढ़ता से सँभाला कि मानो घर की नींव को फिर से थाम लिया हो। दूसरी ओर, बहनें अपने ससुराल में रहते हुए भी तन-मन-धन से निरंतर सहयोग देती रहीं; उनका यह योगदान किसी दूर बसे दीपक की तरह था, जिसकी रोशनी घर तक पहुँचती रहती थी। यह सम्बन्धों का सामान्य निर्वाह नहीं था; यह त्याग, संस्कार और समर्पण की वह जीवित परम्परा थी जिसने परिवार को टूटने नहीं दिया। समय की कठिन राहों पर चलते हुए भी यह परम्परा परिवार को भीतर से बल देती रही और धीरे-धीरे उसे अधिक सुदृढ़ बनाती चली गई।

उसका बचपन अभावों की कड़ी धूप में गुज़रा, पर उसके सपनों पर कभी धूल नहीं जमी। कच्चे घर की मिट्टी, सीमित साधन, फटी किताबें और लालटेन की झिलमिलाती लौ, ये सब उसके लिए किसी बोझ की तरह नहीं थे, बल्कि उसी लौ में वह अपनी राह का दीप देखता था। उसने पढ़ाई को केवल काम नहीं, अपनी साधना मान लिया। जहाँ कई बच्चे परिस्थितियों की कठोरता से टूट जाते, वहाँ उसने मन ही मन यह बात थाम ली कि “मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता।” गाँव की पगडंडियों पर उसके छोटे-छोटे कदम मानो भविष्य की किसी अदृश्य राह को गढ़ रहे थे। स्कूल की पुरानी सीढ़ियाँ उसके लिए किसी मंदिर की सीढ़ियों की तरह थीं, जहाँ हर दिन वह ज्ञान के सामने सिर झुकाकर आगे बढ़ता। उसके हर कदम में यह भरोसा छिपा था कि चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो, दृढ़ संकल्प का एक बीज समय के साथ पेड़ बनकर ही रहता है।

धीरे-धीरे उसके भीतर यह विचार गहराई पकड़ता गया कि शिक्षा केवल व्यक्तिगत उन्नति का साधन नहीं, बल्कि समाज की दिशा बदलने वाली शक्ति है। यह सोच उसके भीतर ऐसी जड़ें जमाती चली गई कि आगे चलकर पूरे परिवार के निर्णयों और दृष्टि का आधार बन गई। वर्ष 2008 से, अभावों के बीच रहते हुए भी परिवार ने एक दृढ़ संकल्प अपनाया कि घर के किसी भी बच्चे की पढ़ाई बीच में नहीं रुकेगी। भाइयों और बहनों ने अपनी कठिन परिस्थितियों को पीछे रखते हुए बच्चों को शहर में रखकर शिक्षा दिलाने की राह चुनी। उनका यह प्रयास किसी दीप-शृंखला की तरह था, जहाँ एक दीपक दूसरे को रोशन करता चला गया। इन सबके केंद्र में उसकी शिक्षा-सम्बंधी जागरूकता और उसकी दूरदृष्टि ही थी, जिसने पूरे परिवार को इस दिशा में प्रेरित किया कि ज्ञान ही वह विरासत है जो पीढ़ियों को समृद्ध करती है।

वह केवल अपने लिए पढ़ने वाला बालक नहीं रहा; समय के साथ वह विचार का वह स्रोत बन गया, जिसकी धार से कई रास्तों को दिशा मिलती गई। गाँव और रिश्तेदारी के बच्चों को पढ़ाई की ओर लौटाना, उन्हें शहर ले जाकर स्कूलों में दाखिला करवाना, रहने-खाने की व्यवस्था में साथ खड़ा होना, यह सब उसके स्वभाव का हिस्सा बन गया। वह एक विद्यार्थी भर नहीं था; वह मार्गदर्शन की उस प्रकाश-रेखा की तरह था, जो धुंध में भी रास्ता दिखाती है। उसके मार्गदर्शन से अनेक बच्चे फिर से शिक्षा की पगडंडी पर लौटे, आत्मविश्वास पाया और अपनी-अपनी मंज़िल की ओर बढ़ते गए। उसके भीतर मानो ऐसा दीप जलता था, जिसकी रोशनी किसी एक कमरे तक सीमित नहीं थी; वह आसपास के जीवनों को भी उजाला देती चलती थी।

समय के साथ उसका संसार निरंतर विस्तृत होता गया। इंटर कॉलेज से लेकर स्नातक और परास्नातक तक की यात्रा किसी समतल पथ की तरह नहीं थी; उसमें कठिन मोड़, अनिश्चित विराम और कई बार ऐसी खामोश घड़ियाँ भी थीं, जहाँ केवल धैर्य ही सहारा बनता है। फिर भी वह हर चुनौती को इस संतुलन से पार करता रहा, मानो मार्ग की कठोरता से अधिक उसे अपने भीतर का विश्वास आगे ले जा रहा हो। धीरे-धीरे यह भावना दृढ़ होती गई कि ग्रामीण परिवेश के बच्चों की राह केवल पुस्तकें न मिल पाने से नहीं रुकती। उनके भीतर आत्मविश्वास का टूटना, सामाजिक सहारा का अभाव और मानसिक संतुलन का डगमगाना भी उतना ही बड़ा अवरोध होता है। यही समझ उसके जीवन का उद्देश्य बनकर उभरती गई।

आज भी वह अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों तक सीमित रहना नहीं चाहता; उसका विचार है कि शिक्षा के माध्यम से समाज की मिट्टी इतनी सुदृढ़ बने कि प्रत्येक बच्चा बिना भय और संकोच के अपनी राह चुन सके। उसका विश्वास है कि ज्ञान का दिया केवल एक व्यक्ति का नहीं होता—उसकी रोशनी आसपास के अंधेरों को भी बदल सकती है।

संघर्षों की उसी लंबी श्रृंखला के बीच वह शोध की दुनिया में प्रवेश करता है। अपने जीवन के अनुभवों को ही शोध-दृष्टि का आधार बनाते हुए, वह मनो-सामाजिक कारकों और विद्यार्थियों की सीखने की प्रक्रिया के बीच नाजुक संबंधों को अपने अध्ययन का विषय बनाता है। यह केवल एक अकादमिक विषय नहीं, बल्कि उसके स्वयं के जीवन की प्रतिछाया है। कई बार कठिनाइयाँ आईं, कई बार परिस्थितियाँ निराशा की सीमा तक पहुँच गईं, फिर भी उसने कभी हार नहीं मानी, क्योंकि वह यह जान चुका था कि “जो रुक जाता है, वही सच में हार जाता है।”

अंततः वर्षों के संघर्ष, त्याग और तपस्या का वह क्षण आया, जिसने सारी मेहनत और संघर्ष को सार्थक बना दिया। 12 दिसंबर 2025 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय से उसे डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई। यह केवल एक डिग्री नहीं थी; यह उस बालक की जीत थी, जिसने अभावों के बीच ज्ञान को अपना सबसे बड़ा सहारा बनाया। यह उसकी माँ की तपस्या की जीत थी, उसकी बहनों के त्याग की जीत थी, उसके भाइयों के परिश्रम की जीत थी, और उस पूरे परिवार की जीत थी, जिसने कभी हार मानना नहीं सीखा। यह क्षण केवल व्यक्तिगत उपलब्धि का प्रतीक नहीं, बल्कि यह विश्वास का द्योतक था कि संघर्ष की राह चाहे कितनी भी कठिन हो, दृढ़ संकल्प और एकजुटता के साथ हर चुनौती को पार किया जा सकता है।

अपने शैक्षणिक सफर में उन्होंने एम.ए. (अंग्रेजी), एम.एड., पीजीडीएचई, योग प्रमाणपत्र, सीसीसी, यूजीसी- नेट, सीटीईटी, यूपीटीईटी और एसटीईटी जैसी अनेक डिग्रियाँ और प्रमाणपत्र हासिल किए, जो उनके शिक्षा के प्रति अनवरत समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति का जीवंत प्रमाण हैं।

अपने समाज में वह डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त करने वाले पहले युवक बने। यह उपलब्धि केवल व्यक्तिगत सम्मान नहीं, बल्कि पूरे गाँव, क्षेत्र और समाज के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन गई। उन्होंने कभी भी इस सफलता को अकेले अपना श्रेय नहीं माना। वह सदा यही कहते हैं कि “जो संघर्ष में हमारा हाथ थामे रखे, वे ही हमारी असली शक्ति हैं।”

आज यह परिवार सामाजिक, आर्थिक और वैचारिक रूप से पहले से कहीं अधिक सशक्त होता जा रहा है। शिक्षा ने न केवल इसे एक नई पहचान दी है, बल्कि जीवन की नई दिशा भी दिखाई है। सच ही कहा गया है कि “शिक्षा वह शेरनी का दूध है, जो जितना पीयेगा वह उतना दहाड़ेगा”। इस परिवार ने वह दूध केवल पिया ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का दृढ़ संकल्प भी लिया है। आज भी वह स्वयं को सीखने की प्रक्रिया में लगा एक साधारण विद्यार्थी ही मानता है। उसका लक्ष्य किसी पद या उपाधि तक सीमित नहीं है; यह उस व्यापक जिम्मेदारी से जुड़ा है, जो आने वाली पीढ़ियों को सही दिशा देने और उन्हें सशक्त बनाने से संबंधित है। वह सहायक आचार्य बनने के अपने लक्ष्य की ओर निष्ठा और परिश्रम के साथ अग्रसर है, और इसी प्रयास में अपने समाज और परिवार के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता जा रहा है।

उसकी जीवन-यात्रा हमें यह सिखाती है कि गरीबी कमजोरी नहीं, संघर्ष अभिशाप नहीं, और अभाव अंत नहीं होते। ये केवल वे सीढ़ियाँ हैं, जिन पर चढ़कर मनुष्य अपनी मंज़िल तक पहुँचता है। उसकी कहानी हर उस व्यक्ति की कहानी है, जो सीमित साधनों के बावजूद असीम सपने देखने का साहस रखता है और अपने विश्वास और परिश्रम से उन्हें साकार करता है।  


मशहूर शायर साहिर लुधियानवी साहब का ये शेर तेजबहादुर जी के जीवन को चरितार्थ करता है-

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें, वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

“फूल बेचने वाले के हाथों में खुशबू रह ही जाती है।” उसी तरह, तेजबहादुर जी के जीवन से शिक्षा की सुगंध, संस्कार की महक और संघर्ष की प्रेरणा निरंतर बहती रहेगी। यही उनकी वास्तविक, जीवंत और अमर सफलता है। एक ऐसी विरासत, जो पीढ़ियों तक प्रकाश और मार्गदर्शन देती रहेगी।

स्रोत एवं स्वीकृति: यह आलेख डॉ. तेज बहादुर मौर्य द्वारा स्वयं प्रदत्त जानकारी पर आधारित है तथा उनकी लिखित अनुरोध  से प्रकाशित किया जा रहा है। सभी तथ्यों की जिम्मेदारी सूचना प्रदाता की है।

सुलतानपुर, 13 Nov 2025, 07:16 PM




जिले के तिकोनिया पार्क से पंत स्टेडियम रोड पर स्थित अमीना ताइक्वांडो एकेडमी में इन दिनों जोश और अनुशासन का अनोखा संगम देखने को मिल रहा है। एकेडमी में कुशल और अनुभवी प्रशिक्षकों के मार्गदर्शन में लगभग साठ ताइक्वांडो खिलाड़ी अपनी-अपनी बेल्ट परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हुए हैं।यहां व्हाइट बेल्ट से लेकर ब्लैक बेल्ट तक की ट्रेनिंग दी जा रही है। विशेष रूप से, आठ खिलाड़ी रेड वन से ब्लैक बेल्ट अर्जित करने की तैयारी में हैं, जबकि तीन खिलाड़ी रेड से रेड वन बेल्ट की परीक्षा देने जा रहे हैं। सभी खिलाड़ी प्रतिदिन कठिन अभ्यास कर अपने लक्ष्य को पाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।प्रशिक्षकों के निर्देशन में खिलाड़ियों को पूंजे (Poomsae), सेल्फ डिफेंस और ब्रेकिंग जैसी विधाओं में निपुण बनाया जा रहा है। अगली बेल्ट हासिल करने के लिए उन्हें शारीरिक प्रदर्शन के साथ लिखित परीक्षा में भी श्रेष्ठ प्रदर्शन करना होगा।एकेडमी के प्रशिक्षिका नेशनल गोल्ड मेडलिस्ट अमीना बानो खिलाड़ियों की मेहनत और समर्पण से बेहद संतुष्ट हैं। उनका कहना है कि बच्चों में अनुशासन और आत्मविश्वास तेजी से बढ़ा है, और उनमें उच्चस्तरीय प्रतियोगिताओं में सफलता पाने की क्षमता दिखाई दे रही है।वहीं अभिभावकों ने भी प्रशिक्षकों की मेहनत की सराहना की। उनका कहना है कि “अमीना ताइक्वांडो एकेडमी" में हर बच्चे पर व्यक्तिगत ध्यान दिया जाता है। यहां प्रशिक्षण के साथ आत्मरक्षा और शारीरिक फिटनेस पर भी समान रूप से फोकस किया जाता है, जो बेहद सराहनीय है।”इस समय अकादमी के प्रशिक्षक और खिलाड़ी दोनों ही आगामी बेल्ट परीक्षाओं को लेकर पूरी तरह तैयार हैं। अमीना ताइक्वांडो एकेडमी धीरे-धीरे जिले में ताइक्वांडो प्रशिक्षण का एक प्रमुख केंद्र बनती जा रही है और यहां के खिलाड़ी भविष्य में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने को तत्पर हैं।


दोस्तपुर संवाद सूत्र, 13 Nov 2025, 06:30PM



भाग्यवती घनश्याम सरस्वती शिशु मंदिर, दोस्तपुर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर कथा व्यास श्री हरि मंगल पाराशर दास जी महाराज ने कहा कि भागवत कथा का श्रवण मन का शुद्धिकरण करता है, जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश करता है और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने बताया कि कलयुग में कथा श्रवण ही मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग है, जो अन्य युगों में कठिन था।

कार्यक्रम के प्रारंभ में कथा व्यास का पूजन बबलू जायसवाल, पिंकी जायसवाल, राजकुमार सोनकर, कृष्ण चंद्र बरनवाल, मन्नू सेठ, अर्चना मिश्रा और दिनेश त्रिपाठी द्वारा किया गया।

कथा की व्यवस्था प्रभाकर दास जी महाराज के निर्देशन में की जा रही है। उन्होंने भक्तों से अधिक से अधिक संख्या में कथा श्रवण कर पुण्य लाभ अर्जित करने का आह्वान किया।

कथा में बबलू जायसवाल, दिनेश त्रिपाठी, बिंदा जायसवाल, राजू जायसवाल, मनीष अग्रहरि, राजकुमार सोनकर, राजेश द्विवेदी, धीरेंद्र सिंह, मीरा तिवारी, साहब राम मोदनवाल, सुभाष मोदनवाल, दिनेश तिवारी, हनुमान पांडे, शशि बरनवाल, अर्चना मिश्रा, विवेक तिवारी और अभय सोनी सहित अनेक धर्मप्रेमी श्रद्धालु उपस्थित रहे। यह दिव्य कथा 19 नवंबर तक जारी रहेगी।

मंत्रिमंडल ने दुख जताया, संवेदना प्रकट की — अब ज़रूरत है कि यह संवेदना सतर्कता में बदल जाए।



दिल्ली के लालकिले के पास हुआ बम विस्फोट एक दर्दनाक हादसा ही नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है।
सरकार ने मृतकों को श्रद्धांजलि दी, घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की, और जांच के आदेश जारी किए हैं। लेकिन जनता का मन अब सिर्फ शोक नहीं, सुरक्षा के भरोसे की तलाश में है।


10 नवंबर 2025 की शाम को हुए कार बम धमाके ने पूरे देश को झकझोर दिया।
मंत्रिमंडल ने बैठक कर इस घटना की कठोर निंदा की, मृतकों के प्रति श्रद्धांजलि और उनके परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की।
साथ ही यह भी भरोसा दिया गया कि दोषियों को जल्द न्याय के कटघरे में लाया जाएगा।

सरकार की तत्परता और मानवीय प्रतिक्रिया सराहनीय है। लेकिन सवाल यह भी है कि प्रशासनिक तंत्र इतने बड़े शहर में संभावित खतरे का पूर्वानुमान क्यों नहीं लगा सका?
सुरक्षा तंत्र की उपस्थिति के बावजूद विस्फोट होना बताता है कि कहीं न कहीं सतर्कता की कड़ी ढीली पड़ी है।

दिल्ली जैसे शहर में कोई भी घटना केवल पुलिस या प्रशासन की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की परीक्षा होती है।
अच्छी बात यह है कि सरकार ने जांच को तेज़ और पारदर्शी रखने के निर्देश दिए हैं, और सुरक्षा एजेंसियाँ लगातार निगरानी में जुटी हैं।
पर अब यह भी समय है कि ऐसी घटनाओं से सबक लिया जाए, ताकि अगली बार प्रतिक्रिया नहीं, रोकथाम दिखे।

जनता प्रशासन से नाराज़ है, लेकिन निराश नहीं।
लोग उम्मीद करते हैं कि इस बार जांच सिर्फ रिपोर्टों तक सीमित न रहे, बल्कि नतीजों तक पहुँचे।
क्योंकि संवेदना का असली अर्थ तभी है, जब उससे सुधार की शुरुआत हो।


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सरकार की नीयत साफ़ दिखती है — संवेदनशीलता और संकल्प दोनों मौजूद हैं।
अब जिम्मेदारी प्रशासन की है कि वह इस भरोसे को मजबूत करे।
हर नागरिक चाहता है कि दिल्ली फिर शांति से साँस ले सके —
बिना डर, बिना “अगर” और “लेकिन” के।


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✍️ आनंद माधव तिवारी
कार्यकारी संपादक – Prakash News of India


बांदा। बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा में आयोजित 11वें दीक्षांत समारोह में जनपद रामपुर के ग्राम अनवा, तहसील शाहाबाद निवासी अजय कुमार शर्मा, पुत्र श्री रविन्द्र कुमार शर्मा को सब्जी विज्ञान (Vegetable Science) विषय में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (Ph.D.) की उपाधि प्रदान की गई।

समारोह की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश की माननीय राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय की कुलाधिपति श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने की। मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली के निदेशक डॉ. चेरूकुमल्ली श्रीनिवास राव उपस्थित रहे, जिन्होंने अपने करकमलों से अजय शर्मा को उपाधि प्रदान की।

राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि “शिक्षा और अनुसंधान ही देश की प्रगति की कुंजी हैं। युवा शोधकर्ताओं को अपने ज्ञान को समाज और किसानों के हित में उपयोग करना चाहिए।”

मुख्य अतिथि डॉ. राव ने कहा कि “कृषि अनुसंधान तभी सफल होता है जब उसका लाभ सीधे किसानों तक पहुंचे। नवाचार और व्यावहारिक अनुसंधान से ही कृषि क्षेत्र में स्थायित्व लाया जा सकता है।”

कृषि अनुसंधान में विशेष योगदान
अजय कुमार शर्मा वर्तमान में भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR), वाराणसी में कार्यरत हैं। वे चौलाई (Amaranthus) की आयरन-समृद्ध किस्मों तथा गर्मी में अधिक उपज देने वाले टमाटर की प्रजातियों पर शोध कर रहे हैं। उनका यह कार्य पोषण सुरक्षा के साथ-साथ किसानों की आय में वृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो रहा है।

अजय शर्मा का वक्तव्य
अजय शर्मा ने कहा, “यह सम्मान मेरे जीवन का गर्वपूर्ण क्षण है। मैं इस उपलब्धि का श्रेय अपने स्वर्गीय दादा श्री अवतारी लाल शर्मा, अपने माता-पिता, गुरुजनों और मित्रों को देता हूँ, जिनके आशीर्वाद से यह संभव हो पाया।”

विश्वविद्यालय की गौरवपूर्ण परंपरा
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने स्थापना के बाद से ही कृषि शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया है। समारोह में कुलपति और संकाय सदस्यों ने विद्यार्थियों को बधाई दी और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

स्थानीय गर्व का अवसर
अजय शर्मा की इस सफलता से न केवल उनके परिवार में हर्ष का वातावरण है, बल्कि पूरा रामपुर जनपद गर्व महसूस कर रहा है। उनकी उपलब्धि युवा शोधार्थियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी है।


 

फाइल फोटो, डॉ योगेश श्रीवास्तव 

MD Anderson से नई ऊँचाई की ओर भारतीय मूल के वैज्ञानिक की उड़ान

भारतीय मूल के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक डॉ. योगेश श्रीवास्तव को अमेरिका के प्रतिष्ठित University of Texas Health Science Center at Houston (UTHealth Houston) के McWilliams School of Biomedical Informatics में सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट नियुक्त किया गया है। यह उपलब्धि उनके करियर का महत्वपूर्ण पड़ाव है, जिसे उन्होंने MD Anderson Cancer Center में पोस्टडॉक्टोरल फेलो के रूप में सफल अनुसंधान कार्य के बाद प्राप्त किया है।

शिक्षा और शोध की गौरवशाली यात्रा

फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) से निकलकर डॉ. श्रीवास्तव ने जीव विज्ञान में स्नातक (2006, डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय), जैव प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर (2009, HNB गढ़वाल विश्वविद्यालय) और फिर चीनी सरकार की छात्रवृत्ति पर University of Chinese Academy of Sciences से पीएचडी (बायोकेमिस्ट्री एवं आणविक जीव विज्ञान, 2020) की। इसके बाद उन्होंने MD Anderson Cancer Center, ह्यूस्टन में प्रो. गाल्को के मार्गदर्शन में Hedgehog (Hh) signaling pathway पर शोध किया, जो दर्द संवेदना और न्यूरोडेवलपमेंट के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पुरस्कार और उपलब्धियाँ

  • Dodie P. Hawn Award (2023) : पोस्टडॉक्टोरल फेलो के रूप में उत्कृष्ट योगदान के लिए।
  • GIBH Outstanding Students Award (2018, चीन)।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 25+ शोध पत्र प्रकाशित।
  • न्यूरोसाइंस, कैंसर अनुसंधान, सेल बायोलॉजी और बायोइंफॉर्मेटिक्स में विशेषज्ञता।

भारत और विदेश में योगदान

अमेरिका जाने से पूर्व डॉ. श्रीवास्तव ने भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों —AIIMS नई दिल्ली, NICPR नोएडा और ICAR-IIVR वाराणसी  में सीनियर रिसर्च फेलो के रूप में कार्य किया। वे जर्मनी के सारलैंड विश्वविद्यालय में विजिटिंग साइंटिस्ट भी रहे। साथ ही उन्होंने ICMR-INSERM बायोबैंक की स्थापना में योगदान दिया और 50+ छात्रों को बायोइंफॉर्मेटिक्स की शिक्षा दी।

UTHealth Houston में सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट के रूप में डॉ. श्रीवास्तव अब बायोमेडिकल इंफॉर्मेटिक्स और स्वास्थ्य तकनीक अनुसंधान में अग्रणी परियोजनाओं का नेतृत्व करेंगे।फैजाबाद से शुरू हुई शैक्षणिक यात्रा का ह्यूस्टन तक पहुँचना भारतीय वैज्ञानिक क्षमता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। डॉ. योगेश श्रीवास्तव की यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत करियर की बड़ी छलांग है, बल्कि विश्व मंच पर भारतीय वैज्ञानिक समुदाय की साख को और मजबूत करती है।


 


सुल्तानपुर। शिक्षा के क्षेत्र में सुल्तानपुर जनपद ने एक बार फिर उपलब्धि हासिल की है। अवध विश्वविद्यालय की बीएड फाइनल परीक्षा 2025 में जिले के अखिल दुबे ने टॉप कर पूरे क्षेत्र का मान बढ़ाया है।

अखिल दुबे, जो कि प्रख्यात अध्यापक राघवराम दुबे के पुत्र हैं, ने अपनी लगन और मेहनत से यह सफलता अर्जित की। उन्होंने सत्र 2023-24 में आंबेडकर नगर स्थित कल्पना शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान में बीएड की पढ़ाई प्रारंभ की थी।

26 अगस्त को जारी परिणाम में अखिल ने कुल 500 में से 443 अंक प्राप्त कर विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान हासिल किया।

उनकी इस उपलब्धि से परिवार, गुरुजन और संस्थान में हर्ष की लहर है। संस्थान के प्राचार्य व शिक्षकों ने कहा कि अखिल की यह सफलता अनुशासन और परिश्रम का परिणाम है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगी।



प्रयागराज: अधिवक्ता विजय कुमार द्विवेदी और जल योद्धा आर्य शेखर की अगुवाई में आज गोविंदपुर, प्रयागराज में “जान चौपाल” का आयोजन किया गया। चौपाल का प्रमुख मुद्दा था – प्रयागराज में एम्स (AIIMS) की स्थापना।


इस अवसर पर बड़ी संख्या में वरिष्ठ नागरिकों और युवाओं ने भागीदारी की और एम्स की स्थापना को जनहित में आवश्यक बताते हुए समर्थन में जोरदार हुंकार भरी।


चौपाल में वक्ताओं ने कहा कि प्रयागराज जैसे ऐतिहासिक, धार्मिक और शैक्षणिक महत्व के नगर को उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं की सख्त आवश्यकता है। एम्स की स्थापना से न केवल प्रयागराज बल्कि पूरे पूर्वांचल के लाखों लोग लाभान्वित होंगे।


युवाओं ने इसे जनता का अधिकार बताते हुए आंदोलन को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया, वहीं वरिष्ठ नागरिकों ने इसे स्वास्थ्य सुरक्षा का सबसे बड़ा कदम बताया।


चौपाल के अंत में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि एम्स की मांग को लेकर जनजागरण अभियान और तेज किया जाएगा।

इस कार्यक्रम में अधिवक्ता ऋषभ उपाध्याय, हर्षित तिवारी, मयंक द्विवेदी, शिवम् सिंह, समेत दर्जनों स्थानीय नागरिक मौजूद रहे।

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