पहलगाम की बर्फीली वादियों में,
शांति की चादर फटी अचानक।
जहाँ खिलते थे सपनों के फूल,
वहीं बरसी मौत की साज़िश
भयानक।
“क्या नाम है?” - पहला सवाल था ,
आतंकी की आँखों में खून था। ज
“राम? श्याम?” - नाम पे सजा मिली,
हिंदू थे, बस यही वजह काफी थी।
कपड़े उतरवाए, पैंट खुलवाई,
शरीर पे धर्म की पहचान पाई।
न देखा मासूम है या जवान,
बस तिलक नहीं, पर कुल था जान।
जिसने गाया कभी वेद का गीत,
जिसने पूजा तुलसी की प्रीत।
उसे मार दिया नाम के कारण,
ये कैसा न्याय? ये कैसी रीत?
रोया पहाड़, कांपे पग- पग,
वो घाटी बनी नरसंहार की नग।
जहाँ जन्मे थे कश्यप ऋषि के वंशज,
आज वहाँ बहा सनातन का रज।
ना कोई विरोध, ना कोई साज़,
केवल खून और मौन आवाज़।
मीडिया चुप, शासन निठल्ला,
कश्मीर फिर बना कुर्बानी का पल्ला।
हमें अब न कैंडल, न जलूस चाहिए,
हमें गर्जता हुआ संघर्ष चाहिए।
हर सनातनी को जगना होगा,
अब और नहीं सहना होगा।
ये केवल हत्या नहीं, अपमान है,
धरती माँ का चीरहरण समान है।
अब या तो उठो, या भूल जाओ,
अपने धर्म को - मरने दो, या बचाओ।
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लेखक
सामाजिक चिंतक
(हिंदू स्वाभिमान की आवाज़)
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