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अयोध्या: अयोध्या के पावन धरा पर चल रही श्रीमद्भगवद कथा में जगतगुरु बाल योगी स्वामी राम प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने श्रद्धालुओं के हृदय में भक्ति का दीप जलाया और उन्हें जीवन की सच्ची साधना की दिशा में प्रेरित किया। कथा के दौरान स्वामी जी ने अपने अमृतमय वचनों में यह महत्वपूर्ण संदेश दिया कि भगवान की सच्ची उपासना बाहरी कर्मकांडों से नहीं, बल्कि हमारे अपने जीवन में बुरी आदतों के त्याग और सदाचार के पालन से होती है।
स्वामी जी ने कहा, "भजन का अर्थ केवल गाना गाने से नहीं है; भजन का सच्चा अर्थ तब है, जब हमारे कर्म और आचरण में शुद्धता आए। जो व्यक्ति अपनी बुरी आदतों का त्याग कर जीवन में पवित्रता लाता है, वही सच्चे भक्ति मार्ग पर होता है। यह भक्ति मार्ग हमें परमात्मा से जोड़ता है और आत्मिक संतोष प्रदान करता है।"
भक्ति और आचरण का संबंध
स्वामी राम प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने अपने प्रवचनों में भक्ति और आचरण के संबंध को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि केवल मंदिरों में जाकर पूजा करना, भजन-कीर्तन करना या धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना तभी सार्थक है जब हम अपने भीतर व्याप्त दोषों, क्रोध, लोभ, और ईर्ष्या जैसे विकारों से स्वयं को मुक्त कर सकें। यह तभी संभव है जब हम अपनी बुरी आदतों को सुधारने की पहल करें और जीवन में सकारात्मकता का संचार करें।
बुरी आदतों को त्यागने का आह्वान
स्वामी जी ने बुरी आदतों को छोड़ने पर बल देते हुए बताया कि आज के समाज में भटकाव और नकारात्मकता का कारण व्यक्ति की अपने आचरण और आदतों में गिरावट है। उन्होंने कहा कि यदि हम अपने भीतर की नकारात्मकता, बुरी आदतें और विकारों को दूर कर सकें, तो ईश्वर से निकटता अपने आप प्राप्त हो जाएगी। स्वामी जी ने कहा, "ईश्वर किसी बाहरी साधना में नहीं, बल्कि हमारे अंतर्मन की पवित्रता में विराजमान हैं। इसलिए, अपने जीवन को सुधारना ही सच्ची भक्ति का मार्ग है।"
युवाओं को आत्म-सुधार का संदेश
इस अवसर पर स्वामी जी ने युवाओं को विशेष रूप से अपने आचरण को सुधारने और सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त होने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को अपनी आदतों और व्यवहार में सुधार लाना चाहिए ताकि वे समाज और राष्ट्र के निर्माण में सकारात्मक योगदान दे सकें। स्वामी जी ने युवाओं से आह्वान किया कि वे जीवन में आत्म-संयम का पालन करें, अपने कार्यों में सत्य और ईमानदारी को महत्व दें, और अपने आसपास के लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बनें।
साधना और सच्ची भक्ति का महत्व
स्वामी राम प्रपन्नाचार्य जी ने भक्तों को साधना और सच्ची भक्ति का महत्व समझाते हुए कहा कि ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति किसी बाहरी आडंबर से नहीं, बल्कि हमारे भीतर की पवित्रता और समर्पण से होती है। उन्होंने कहा, "साधना का अर्थ केवल जप, तप या तीर्थ यात्रा नहीं है; साधना का वास्तविक अर्थ है, अपने हृदय को शुद्ध रखना, अपने विचारों को निर्मल बनाना और सच्चाई के मार्ग पर चलना।"
श्रद्धालुओं पर गहरी छाप
कथा में उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं ने स्वामी जी के इस अनमोल संदेश को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया। उनकी वाणी ने श्रोताओं के हृदय को गहरे तक प्रभावित किया और उन्हें आत्म-संयम एवं सुधार की प्रेरणा दी। इस प्रेरणादायी प्रवचन के बाद, भक्तों में एक नई ऊर्जा और उत्साह का संचार हुआ, और वे भगवान के प्रति अपनी आस्था को और भी दृढ़ महसूस कर रहे थे।
इस प्रकार, अयोध्या में श्रीमद्भगवद कथा का यह पावन आयोजन श्रद्धालुओं के लिए न केवल एक धार्मिक अनुभव था, बल्कि एक आत्म-सुधार और आध्यात्मिक जागरण का मार्गदर्शक अवसर बन गया। स्वामी राम प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने अपने वचनों से यह स्पष्ट किया कि सच्ची भक्ति बाहरी आडंबरों में नहीं, बल्कि हमारे अंदर के शुद्ध भावों और पवित्र आचरण में बसती है।
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