मंत्रिमंडल ने दुख जताया, संवेदना प्रकट की — अब ज़रूरत है कि यह संवेदना सतर्कता में बदल जाए।



दिल्ली के लालकिले के पास हुआ बम विस्फोट एक दर्दनाक हादसा ही नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है।
सरकार ने मृतकों को श्रद्धांजलि दी, घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की, और जांच के आदेश जारी किए हैं। लेकिन जनता का मन अब सिर्फ शोक नहीं, सुरक्षा के भरोसे की तलाश में है।


10 नवंबर 2025 की शाम को हुए कार बम धमाके ने पूरे देश को झकझोर दिया।
मंत्रिमंडल ने बैठक कर इस घटना की कठोर निंदा की, मृतकों के प्रति श्रद्धांजलि और उनके परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की।
साथ ही यह भी भरोसा दिया गया कि दोषियों को जल्द न्याय के कटघरे में लाया जाएगा।

सरकार की तत्परता और मानवीय प्रतिक्रिया सराहनीय है। लेकिन सवाल यह भी है कि प्रशासनिक तंत्र इतने बड़े शहर में संभावित खतरे का पूर्वानुमान क्यों नहीं लगा सका?
सुरक्षा तंत्र की उपस्थिति के बावजूद विस्फोट होना बताता है कि कहीं न कहीं सतर्कता की कड़ी ढीली पड़ी है।

दिल्ली जैसे शहर में कोई भी घटना केवल पुलिस या प्रशासन की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की परीक्षा होती है।
अच्छी बात यह है कि सरकार ने जांच को तेज़ और पारदर्शी रखने के निर्देश दिए हैं, और सुरक्षा एजेंसियाँ लगातार निगरानी में जुटी हैं।
पर अब यह भी समय है कि ऐसी घटनाओं से सबक लिया जाए, ताकि अगली बार प्रतिक्रिया नहीं, रोकथाम दिखे।

जनता प्रशासन से नाराज़ है, लेकिन निराश नहीं।
लोग उम्मीद करते हैं कि इस बार जांच सिर्फ रिपोर्टों तक सीमित न रहे, बल्कि नतीजों तक पहुँचे।
क्योंकि संवेदना का असली अर्थ तभी है, जब उससे सुधार की शुरुआत हो।


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सरकार की नीयत साफ़ दिखती है — संवेदनशीलता और संकल्प दोनों मौजूद हैं।
अब जिम्मेदारी प्रशासन की है कि वह इस भरोसे को मजबूत करे।
हर नागरिक चाहता है कि दिल्ली फिर शांति से साँस ले सके —
बिना डर, बिना “अगर” और “लेकिन” के।


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✍️ आनंद माधव तिवारी
कार्यकारी संपादक – Prakash News of India