विचारों के विश्वविजेता:स्वामी विवेकानंद,जिन्होंने विश्व पटल पर भारत की अटल पताका फहराई।





यदि कोई यह पूछे कि वह कौन युवा योद्धा  संन्यासी था, 
जिसने विश्व पटल पर भारत और सनातन की कीर्ति पताका फहराई, तो सबके मुख से निःसंदेह स्वामी विवेकानन्द का नाम ही निकलेगा।

National Youth Day: स्वामी विवेकानंद की जयंती के मौके पर हर साल 'नेशनल यूथ डे' मनाया जाता है। भारत सरकार ने 1984 में 12 जनवरी को नेशनल यूथ डे की घोषणा की थी और 1985 से ये दिन हर साल इसी रूप में मनाया जाता है।


आइये जानते हैं, स्वामी विवेकानंद जी के बारे में

विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्र था। उनका जन्म कोलकाता में 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। बचपन से ही वे बहुत शरारती, साहसी और प्रतिभावान थे। पूजा-पाठ और ध्यान में उनका मन बहुत लगता था।

नरेन्द्र के पिता उन्हें अपनी तरह प्रसिद्ध वकील बनाना चाहते थे; पर वे धर्म सम्बन्धी अपनी जिज्ञासाओं के लिए इधर-उधर भटकते रहते थे। किसी ने उन्हें दक्षिणेश्वर के पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस के बारे में बताया कि उन पर माँ भगवती की विशेष कृपा है। यह सुनकर नरेन्द्र उनके पास जा पहुँचे।

वहाँ पहुँचते ही उन्हें लगा, जैसे उनके मन-मस्तिष्क में विद्युत का संचार हो गया है। यही स्थिति रामकृष्ण जी की भी थी; उनके आग्रह पर नरेन्द्र ने कुछ भजन सुनाये। भजन सुनते ही परमहंस जी को समाधि लग गयी। वे रोते हुए बोले, नरेन्द्र मैं कितने दिनों से तुम्हारी प्रतीक्षा में था। तुमने आने में इतनी देर क्यों लगायी ? धीरे-धीरे दोनों में प्रेम बढ़ता गया। वहाँ नरेन्द्र की सभी जिज्ञासाओं का समाधान हुआ।*

*उन्होंने परमहंस जी से पूछा - क्या आपने भगवान को देखा है ? उन्होंने उत्तर दिया - हाँ, केवल देखा ही नहीं उससे बात भी की है। तुम चाहो तो तुम्हारी बात भी करा सकता हूँ। यह कहकर उन्होंने नरेन्द्र को स्पर्श किया। इतने से ही नरेन्द्र को भाव समाधि लग गयी। अपनी सुध-बुध खोकर वे मानो दूसरे लोक में पहुँच गये।

अब नरेन्द्र का अधिकांश समय दक्षिणेश्वर में बीतने लगा। आगे चलकर उन्होंने संन्यास ले लिया और उनका नाम विवेकानन्द हो गया। जब रामकृष्ण जी को लगा कि उनका अन्त समय पास आ गया है, तो उन्होंने विवेकानन्द को स्पर्श कर अपनी सारी आध्यात्मिक शक्तियाँ उन्हें दे दीं। अब विवेकानन्द ने देश-भ्रमण प्रारम्भ किया और वेदान्त के बारे में लोगों को जाग्रत करने लगे।

उन्होंने देखा कि ईसाई पादरी निर्धन ग्रामीणों के मन में हिन्दू धर्म के बारे में तरह-तरह की भ्रान्तियाँ फैलाते हैं। उन्होंने अनेक स्थानों पर इन धूर्त मिशनरियों को शास्त्रार्थ की चुनौती दी; पर कोई सामने नहीं आया। इन्हीं दिनों उन्हें शिकागो में होने जा रहे विश्व धर्म सम्मेलन का पता लगा। उनके कुछ शुभचिन्तकों ने धन का प्रबन्ध कर दिया। स्वामी जी भी ईसाइयों के गढ़ में ही उन्हें ललकारना चाहते थे। अतः वे शिकागो जा पहुँचे।

शिकागो का सम्मेलन वस्तुतः दुनिया में ईसाइयत की जयकार गुँजाने का षड्यन्त्र मात्र था। इसलिए विवेकानन्द को बोलने के लिए सबसे अन्त में कुछ मिनट का ही समय मिला; पर उन्होंने अपने पहले ही वाक्य ‘अमरीकावासियो भाइयो और बहिनो’ कहकर सबका दिल जीत लिया। तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूँज उठा। यह 11 सितम्बर, 1893 का दिन था। उनका भाषण सुनकर लोगों के भ्रम दूर हुए। इसके बाद वे अनेक देशों के प्रवास पर गये। इस प्रकार उन्होंने सर्वत्र हिन्दू धर्म की विजय पताका लहरा दी।

भारत लौटकर उन्होंने श्री रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी विश्व भर में वेदान्त के प्रचार में लगा है। जब उन्हें लगा कि उनके जीवन का लक्ष्य पूरा हो गया है, तो उन्होंने 4 जुलाई, 1902 (अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस ) को महासमाधि लेकर स्वयं को परमात्म में लीन कर लिया।

विवेकानंद के जीवन से जुड़ी कई घटनाएं और उनका कथन आज भी कई प्रकार के सीख देता है। पढ़ें, स्वामी विवेकानंद के 10 अनमोल विचार..

1. जो हमारी सोच हमे बनाती है, हम वही बनते हैं। इसलिए हमेशा अपनी सोच को लेकर सतर्क रहें। शब्द का महत्ता दूसरे दर्जे की है। विचार जिंदा रहते हैं और वे ही आगे बढ़ते हैं। 
2. ब्रह्मांड में मौजूद सभी शक्तियां पहले से ही हम सभी में मौजूद हैं। ये हम हैं जो अपने हाथों को अपनी आंखों के सामने रख लेते हैं और फिर रोते रहते हैं चारो ओर अंधेरा है।
3. अगर पैसा दूसरों की मदद करने में योगदान करता है तो फिर ये काम की चीज है। इसका कोई मूल्य है। अगर ऐसा नहीं है तो ये फिर शैतान की तरह है। ऐसे में ये जितनी जल्दी हमसे दूर हो जाए, उतना ही अच्छा होगा।
4. एक समय में एक काम करो और ऐसा करते हुए अपनी पूरी शक्ति, आत्मा उसमें डाल दो। बाकी सब कुछ भूल जाओ। 
5. ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
6. उठो और जागो और तब तक नहीं रूको जब तक कि तुम अपना लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते।
7. जब तक आप खुद पर भरोसा करना नहीं सीखते तब तक भगवान भी आप पर भरोसा नहीं करते हैं।
8. दुनिया के तमाम लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहांत आज हो या किसी और युग में, लेकिन तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट नही होना।
9. जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी।
10. किसी दिन आपके सामने कोई समस्या न आए तो आप इस बात का भरोसा कर सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।


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