क्या है सिएबी और सिएए ?
सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल(सिएबी)संसद से पास होने के बाद अब सिटिजनशिप अमेंडमेंट ऐक्ट(सिएए)
यानी कानून बन चुका है। इस कानून के प्रावधानों के तहत तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के उन छह धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारतीयता नागरिकता देने की प्रक्रिया में ढील दी गई है जिन्होंने भारत में शरण ले रखी है।वास्तव में ये कानून महात्मा गाँधी समेत संविधान निर्माताओं के इक्छा को मूर्ती रूप प्रदान किया गया है जिसके अंतर्गत सन 1947 के धार्मिक बटवारे के बाद भी पुर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में रह गए हिन्दुओ,सिक्खों से उन्होंने अपील की थी भविष्य में कभी भी इन लोगों के साथ कोई धार्मिक अत्याचार होता है तो भारत के द्वार हमेशा के लिये खुला है।
इस बिल के पास होने के उपरांत भारत बचाओ के नाम से देश के राजधानी में विशाल प्रदर्शन ने तो जैसे देश की हवा का रुख ही बदल दिया। इस नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के दुष्प्रचार ने पूरे देश को हिसक बना दिया।देश को अस्थिर करने और आंतरिक सुरक्षा को तोड़ने की पुरजोर कोशिश हुई।
वास्तव में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) किसी भारतीय नागरिक के लिए बना ही नहीं है बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक शरणार्थियों के लिए बना है। विडम्बना यह है कि कुछ लोगों को बलगलाकर कुछ राजनीतिक द्वेष भावना से युक्त लोग भारतवर्ष का आपसी सौहार्द बिगाड़ने का कार्य कर रहे हैं, जो बहुत ही निंदनीय व अस्वीकार्य है। जहां कश्मीर जैसी पत्थरबाजी उत्तर प्रदेश या दिल्ली में हुई , वह स्वतःस्फूर्त नहीं थी । उनका प्रारंभ बाहर से आए पेशेवर गुंडों ने किया । वे पत्थर फेंकना और आगजनी कर गायब हो गए । वहीं प्रदर्शनकारियों को यह भी समझना चाहिए कि लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान ही नहीं है।अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, नदवा कॉलेज, इस्लामिया कॉलेज आदि शिक्षा संस्थानों से जिस प्रकार की अपेक्षा है, उस पर खरा नहीं उतरते। सीएए के विरोध की आड़ में हिंसा, आगजनी जैसी घटनाएं शिक्षा संस्थानों के माध्यम से हुई हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। विरोध प्रदर्शन के समय राष्ट्रीय ध्वज हाथ में लेकर जो व्यक्तिगत, सरकारी संपत्तियो को नुकसान पहुंचाते हैं क्या वह लोग वास्तव में देश भक्त हो सकते हैं, यह सोचने का, विषय है।जबकि सर्वोच्च न्यायालय दोनों मामलों में संवैधानिकता तय करने के प्रश्न को अपने हाथ में ले चुका है , फिर उन्हें सड़कों पर विरोध , और वह भी सार्वजनिक संपत्ति जलाने वाला हिंसक विरोध करने की जरूरत क्या है ? क्यों नहीं शांत रहकर कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करते ? रामजन्मभूमि पर क्या यही लोग रामभक्तों को धैर्य से प्रतीक्षा का उपदेश नहीं दे रहे थे ? उच्चतम न्यायालय ने जामिया मिलिया की याचिका ठुकराते हुए ठीक ही कहा कि पहले हिंसा बंद कीजिए , उसके बाद ही सनवाई होगी । विरोधी लोग न्यायपालिका को तो सुनें , अनुपालन करें । परन्तु नहीं प्रोटेस्ट की आड़ में उन्माद फैला रहे हैं।
सँविधान की दुहाई और भारत बचाओ की भावना से ओतप्रोत का दिखावा करने वाले राजनीतिक महत्वाकांक्षी, सत्त्ता के भूखे भेड़ियों को यह भि पता होना चाहिए कि संविधान का अनुच्छेद 51 ए / बी कहता है कि ' सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा और हिंसा से दूर रहना ' भी संवैधानिक कर्तव्य है , लेकिन हाल के कई आंदोलनों में ये आदर्श सिरे से गायब दिखे हैं । स्वाधीनता आंदोलन में जब विदेशी सत्ता से भारत का टकराव था तब भी आंदोलन आदर्श जीवन मूल्यों से प्रतिबद्ध था तो इसीलिए कि यह भाव प्रबल था कि आंदोलन की अपनी मर्यादा बनी रहनी चाहिए । गांधी जी स्वाधीनता आंदोलन के निर्विवाद नेता थे, जिनके सरनेम के टैग से आज भी भारतीय राजनीति का एक परिवार जाना जाता है, ने आन्दोलन की धार तेज करने के लिए उन्हें सरकारी आदेशों की अवज्ञा का विचार आया । गांधी जी ने इसे ' सविनय अवज्ञा ' आंदोलन कहा । मार्च 1940 में उनसे बार - बार पूछा जा रहा था कि सविनय अवज्ञा आंदोलन कब शुरू करेंगें ? गांधी जी ने कांग्रेस कार्यसमिति में कहा , ' देश अभी सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए तैयार नहीं है । छोटी सी अनुशासनबद्ध कांग्रेस को लेकर मैं विश्व से लड़ सकता हूं , लेकिन कांग्रेस लचर है । सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया तो ' अवज्ञा ' ही बचेगी , ' सविनय ' लप्त हो जाएगा । गांधी जी के आंदोलन आदर्श में ' सविनय ' महत्वपूर्ण था । अहिंसा और भी महत्वपूर्ण । उन्होंने कहा कि ' कांग्रेस के भीतर अनुशासनहीनता और हिंसा भरी है । ऐसे में सविनय अवज्ञा आंदोलन का एलान आत्महत्या से कम नहीं।
आप सबसे अपील है कि कोई भी बिल एक्ट बनने के बाद भारतीय संविधान का हिस्सा बन जाता है, जिसका विरोध संविधान के दायरे में रहकर ही करना चाहिए,इसलिए किसी के बहकावे में आकर राष्ट्र के विरोध में कोई कार्य न करें,हमको आप को यहीं रहना है,राष्ट्र विरोधी ताकतों, विचारों को कुचलने का काम करें राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने में सहयोग करें।
सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल(सिएबी)संसद से पास होने के बाद अब सिटिजनशिप अमेंडमेंट ऐक्ट(सिएए)
यानी कानून बन चुका है। इस कानून के प्रावधानों के तहत तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के उन छह धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारतीयता नागरिकता देने की प्रक्रिया में ढील दी गई है जिन्होंने भारत में शरण ले रखी है।वास्तव में ये कानून महात्मा गाँधी समेत संविधान निर्माताओं के इक्छा को मूर्ती रूप प्रदान किया गया है जिसके अंतर्गत सन 1947 के धार्मिक बटवारे के बाद भी पुर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में रह गए हिन्दुओ,सिक्खों से उन्होंने अपील की थी भविष्य में कभी भी इन लोगों के साथ कोई धार्मिक अत्याचार होता है तो भारत के द्वार हमेशा के लिये खुला है।
इस बिल के पास होने के उपरांत भारत बचाओ के नाम से देश के राजधानी में विशाल प्रदर्शन ने तो जैसे देश की हवा का रुख ही बदल दिया। इस नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के दुष्प्रचार ने पूरे देश को हिसक बना दिया।देश को अस्थिर करने और आंतरिक सुरक्षा को तोड़ने की पुरजोर कोशिश हुई।
वास्तव में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) किसी भारतीय नागरिक के लिए बना ही नहीं है बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक शरणार्थियों के लिए बना है। विडम्बना यह है कि कुछ लोगों को बलगलाकर कुछ राजनीतिक द्वेष भावना से युक्त लोग भारतवर्ष का आपसी सौहार्द बिगाड़ने का कार्य कर रहे हैं, जो बहुत ही निंदनीय व अस्वीकार्य है। जहां कश्मीर जैसी पत्थरबाजी उत्तर प्रदेश या दिल्ली में हुई , वह स्वतःस्फूर्त नहीं थी । उनका प्रारंभ बाहर से आए पेशेवर गुंडों ने किया । वे पत्थर फेंकना और आगजनी कर गायब हो गए । वहीं प्रदर्शनकारियों को यह भी समझना चाहिए कि लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान ही नहीं है।अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, नदवा कॉलेज, इस्लामिया कॉलेज आदि शिक्षा संस्थानों से जिस प्रकार की अपेक्षा है, उस पर खरा नहीं उतरते। सीएए के विरोध की आड़ में हिंसा, आगजनी जैसी घटनाएं शिक्षा संस्थानों के माध्यम से हुई हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। विरोध प्रदर्शन के समय राष्ट्रीय ध्वज हाथ में लेकर जो व्यक्तिगत, सरकारी संपत्तियो को नुकसान पहुंचाते हैं क्या वह लोग वास्तव में देश भक्त हो सकते हैं, यह सोचने का, विषय है।जबकि सर्वोच्च न्यायालय दोनों मामलों में संवैधानिकता तय करने के प्रश्न को अपने हाथ में ले चुका है , फिर उन्हें सड़कों पर विरोध , और वह भी सार्वजनिक संपत्ति जलाने वाला हिंसक विरोध करने की जरूरत क्या है ? क्यों नहीं शांत रहकर कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करते ? रामजन्मभूमि पर क्या यही लोग रामभक्तों को धैर्य से प्रतीक्षा का उपदेश नहीं दे रहे थे ? उच्चतम न्यायालय ने जामिया मिलिया की याचिका ठुकराते हुए ठीक ही कहा कि पहले हिंसा बंद कीजिए , उसके बाद ही सनवाई होगी । विरोधी लोग न्यायपालिका को तो सुनें , अनुपालन करें । परन्तु नहीं प्रोटेस्ट की आड़ में उन्माद फैला रहे हैं।
सँविधान की दुहाई और भारत बचाओ की भावना से ओतप्रोत का दिखावा करने वाले राजनीतिक महत्वाकांक्षी, सत्त्ता के भूखे भेड़ियों को यह भि पता होना चाहिए कि संविधान का अनुच्छेद 51 ए / बी कहता है कि ' सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा और हिंसा से दूर रहना ' भी संवैधानिक कर्तव्य है , लेकिन हाल के कई आंदोलनों में ये आदर्श सिरे से गायब दिखे हैं । स्वाधीनता आंदोलन में जब विदेशी सत्ता से भारत का टकराव था तब भी आंदोलन आदर्श जीवन मूल्यों से प्रतिबद्ध था तो इसीलिए कि यह भाव प्रबल था कि आंदोलन की अपनी मर्यादा बनी रहनी चाहिए । गांधी जी स्वाधीनता आंदोलन के निर्विवाद नेता थे, जिनके सरनेम के टैग से आज भी भारतीय राजनीति का एक परिवार जाना जाता है, ने आन्दोलन की धार तेज करने के लिए उन्हें सरकारी आदेशों की अवज्ञा का विचार आया । गांधी जी ने इसे ' सविनय अवज्ञा ' आंदोलन कहा । मार्च 1940 में उनसे बार - बार पूछा जा रहा था कि सविनय अवज्ञा आंदोलन कब शुरू करेंगें ? गांधी जी ने कांग्रेस कार्यसमिति में कहा , ' देश अभी सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए तैयार नहीं है । छोटी सी अनुशासनबद्ध कांग्रेस को लेकर मैं विश्व से लड़ सकता हूं , लेकिन कांग्रेस लचर है । सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया तो ' अवज्ञा ' ही बचेगी , ' सविनय ' लप्त हो जाएगा । गांधी जी के आंदोलन आदर्श में ' सविनय ' महत्वपूर्ण था । अहिंसा और भी महत्वपूर्ण । उन्होंने कहा कि ' कांग्रेस के भीतर अनुशासनहीनता और हिंसा भरी है । ऐसे में सविनय अवज्ञा आंदोलन का एलान आत्महत्या से कम नहीं।
आप सबसे अपील है कि कोई भी बिल एक्ट बनने के बाद भारतीय संविधान का हिस्सा बन जाता है, जिसका विरोध संविधान के दायरे में रहकर ही करना चाहिए,इसलिए किसी के बहकावे में आकर राष्ट्र के विरोध में कोई कार्य न करें,हमको आप को यहीं रहना है,राष्ट्र विरोधी ताकतों, विचारों को कुचलने का काम करें राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने में सहयोग करें।
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