नई दिल्ली: रेल यात्रा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ कहा कि ट्रेन में यात्रा करते समय अगर किसी यात्री का सामान चोरी हो जाता है, तो इसके लिए रेलवे जिम्मेदार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि इसे रेलवे की सेवाओं में कमी के तौर पर नहीं माना जा सकता है।
दरअसल, कोर्ट ने यह फैसला कपड़ा व्यापारी सुरेंद्र बोला की याचिका के जवाब में दिया है। 27 अप्रैल 2005 को सुरेंद्र काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस की रिजर्व सीट पर बैठकर नई दिल्ली जा रहे थे। इस दौरान एक लाख रुपये की राशि उनके पास थी। लेकिन 28 अप्रैल को तड़के साढ़े तीन बजे जब सुरेंद्र उठे, तो उनके पैसे चोरी हो चुके थे। इसके बाद दिल्ली पहुंचते ही उन्होंने जीआरपी थाने उन्होंने एफआईआर दर्ज कराई।
यहीं नहीं इसके कुछ दिन बाद उन्होंने शाहजहांपुर के जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई। जिला उपभोक्ता फोरम में बहस के दौरान सुरेंद्र ने रेलवे की सेवा में कमी की बात कहते हुए हर्जाना दिए जाने की मांग की। जिला उपभोक्ता फोरम ने सुरेंद्र के पक्ष में फैसला सुनाया। रेलवे को एक लाख रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया गया। इसके बाद भारतीय रेलवे ने जिला उपभोक्ता अदालत के इस फैसले को रेलवे ने ऊपरी अदालत में चुनौती दी। लेकिन राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम की तरफ से फिर रेलवे को झटका लगा। दोनों ने जिला फोरम के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिल विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की डबल बेंच ने यात्री के पक्ष में दिए गए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के आदेश को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यात्री के निजी सामान का रेलवे द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं से कोई लेना देना नहीं है। यह हमारी समझ से परे है कि कैसे चोरी को किसी भी संदर्भ में रेलवे द्वारा दी जा रही सेवाओं में कमी के तौर पर देखा जा सकता है। जब सवारी खुद अपने निजी सामान की रक्षा नहीं कर पाई तो इसके लिए रेलवे को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश देते हुए जिला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम के फैसले को रद्द कर दिया।
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