इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पृथ्वी की औसत सतह का तापमान, साल 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. ये बढ़ोतरी पूर्वानुमान से एक दशक पहले ही जाएगी.
BY: माधव आनन्द
दुनिया: इंसानी सभ्यताओं द्वारा वायुमंडल को गर्म करने वाली
गैसों का उत्सर्जन जिस तरह से जारी है,
उसकी वजह से सिर्फ दो दशकों में ही तापमान की सीमाएं टूट चुकी हैं। बीते सालों
में दुनिया ने रिकॉर्ड तोड़ तापमान,
जंगलों में आग लगना और विनाशकारी बाढ़ की घटना देखी है। इंसानों के कारण हुए
बदलावों ने असावधानीपूर्ण तरीक़े से पर्यावरण को ऐसा बना दिया है जो कि हज़ारों
सालों में भी वापस बदला नहीं जा सकता है।
दुनिया भर के विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के
प्रभाव स्वरूप अगर धरती का तापमान 1.5
डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो इसके बेहद गंभीर परिणाम हो सकते हैं। अब तक
वैश्विक तापमान औद्योगीकरण पूर्व के स्तर से 1.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है।
कहा जा रहा है की अगर तमाम वैश्विक राजनेता औद्योगीकरण
पूर्व के समय के वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर पर रोकने में
सक्षम हो गए तो भारी तबाही को रोका जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर ही रोकने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)
के उत्सर्जन में तत्काल रूप से कमी लाने की आवश्यकता है।जैसा कि 2015 पेरिस
समझौते में तय किया गया था।
आईपीसीसी की रिपोर्ट का एक प्रमुख निष्कर्ष ये है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के लक्ष्य को हासिल करना बेहद मुश्किल तो है लेकिन ये संभव है। इसके लिए तुरंत क़दम उठाने की ज़रूरत है। इसका ये अर्थ है कि अगर दुनिया में 2025 से पहले अधिकतम उत्सर्जन तक पहुंचना है, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को 2030 तक लगभग आधा करना है और 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना है तो भारत समेत अलग-अलग देशों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान और शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य में संशोधन करना पड़ेगा।
लेकिन अगर इस संबंध में दुनिया के तमाम देशों ने कोई ठोस क़दम नहीं उठाया तो इस सदी के अंत तक धरती का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ सकता है। अगर कोई क़दम नहीं उठाया गया तो वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग 4 डिग्री सेल्सियस से अधिक भी हो सकती है। जिसके परिणामस्वरूप दुनिया को भयानक हीट-वेव का सामना करना पड़ सकता है, समुद्र के स्तर में बढ़ोत्तरी होने से लाखों लोग बेघर हो सकते हैं, कई पादप-जंतुओं की प्रजाति विलुप्त तक हो सकती है।
प्राकृतिक घटनाओं में जिस तरह से एकाएक बदलाव आए हैं, वह जलवायु
परिवर्तन का ही परिणाम है। तूफ़ानों की संख्या बढ़ गई है, भूकंपों की
आवृत्ति बढ़ गई है, नदियों
में बाढ़ का विकराल स्वरूप आदि घटनाएं पहले से कहीं अधिक बढ़ गई हैं, जिसका सीधा असर
जीवन और जीवित रहने के माध्यमों पर पड़ रहा है।
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