वाराणसी : भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के तीसरे दिन प्रथम सत्र की अघ्यक्षता डा. संजय सिंह, निदेशक, भारतीय बीज विज्ञान संस्थान, मऊ, सह-अध्यक्षता डा. प्रभाकर मोहन सिंह एवं संयोजन डा. राजेश कुमार द्वारा किया गया। इस सत्र में अघ्यक्ष ने अपने सम्बोधन में बताया कि देश में 15 मुख्य सस्य क्षेत्रों एवं 20 पारिस्थितिकी क्षेत्रों के लिए जनक बीज की मांग में बीज उद्योगों के नवाचार की आवश्यकता पर बल दिया। देश में संकर की मांग बढ़ रही है जो आय बढ़ाने में सहायक है। देश में 700 बीज कंपनियां काम कर रही है जिनके सामने मुख्य बाध्यताएँ संकर बीज का अधिक मूल्य, समय से उपलब्धता एवं गुणवत्ता का आश्वासन है। इसके अलावा मुख्य चुनौतियाँ जलवायु परिवर्तन एवं नकली बीज का व्यावसायीकरण है। देश से अफ्रीका एवं एशिया के देशों को बीज निर्यात के बहुत अवसर है, जिसका लाभ बीज उद्योग उढ़ा सकता है। प्रो. प्रदीप श्रीवास्तव, कार्यकारी निदेशक, टीआईएफएसी, डीएसटी, न्यू दिल्ली ने बताया की कृषि में रूपांतरण की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान के अनुसार 2050 में विश्व की जनसंख्या 9.7 बिलियन हो जाएगी जबकि कृषि योग्य भूमि 4 प्रतिशत बढ़ेगी जिससे कृषि योग्य भूमि पर दबाव बढ़ेगा। देश में 54.6 प्रतिशत लोग सीधे कृषि से जुड़ें है। जिनकी आय बढ़ाने में आर्टफिशल इन्टेलिजन्स जैसे सर्च इंजन, नेटफलिक्स, यूट्यूब, सेल्फ ड्रिवन वीइकल, ऑटो लैंग्वेज ट्रांसलेटर और फेसीयल रेकॉगनीशन बहुत सहायक हो सकता है। इस सत्र में कुल 5 व्याख्यान जैसे फूलगोभी के संकर बीज उत्पादन में कोशिकाद्रव्यी बंध्यता का उपयोग, कद्दू का बीज उत्पादन, खीरा का बीज अंकुरण बढ़ाने के लिए सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग, मूली का उच्च ताप सहनशील संकर बीज उत्पादन एवं जल भराव सहनशीलता के लिए बैंगन रूट स्टॉक पर टमाटर के तने की ग्राफटींग एवं अधिक उत्पादन के लिए आलू के रूट स्टॉक पर टमाटर के तने की ग्राफटींग तकनीकी का प्रयोग। प्लेनरी सेशन की अघ्यक्षता डॉ बी एस धनखड़, सह अघ्यक्षता डॉ टी के बेहेरा एवं संयोजन डॉ प्रभाकर मोहन सिंह द्वारा किया गया। प्रभाकर मोहन सिंह द्वारा विभिन्न सत्रों की संस्तुतियों के बारे में विस्तार से बताया गया। संगोष्ठी के दौरान मंथन से निकली कुछ संस्तुतियाँ इस प्रकार रहीं – आई.ओ.टी.; ए.आई., ड्रोन तकनीकी आदि का प्रयोग करके क्लाइमेट स्मार्ट बागवानी विधियों का विकास, अधिक तापमान सहिष्णु किस्मों का विकास, दियारा क्षेत्रों हेतु तकनीकों का विकास, विकसित तकनीकों के प्रभाव का आकलन, राज्यवार /सब्जीवार मानचित्रों का विकास, परंपरागत सब्जी प्रजनन विधियों का नवीनतम तकनीकों के सामंजस्य में प्रयोग, एग्रो-इकोसिस्टम विश्लेषण आधारित समेकित पीड़क प्रबंधन, पौध आधारित पीड़कनाशियों का विकास एवं संवर्धन, तुड़ाई उपरांत प्रबंधन शृंखला का सुदृढ़ीकरण आदि। डॉ टी के बेहेरा ने इस गोष्ठी में आयोजित सत्रों की संस्तुतियों को सब्जियों से संबंधित सभी संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों को भेजने का अनुरोध किया, जिससे भविष्य में वैज्ञानिक अपने शोध में इसे शामिल कर सब्जियों के उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि कर किसानों की आय दुगुना करने में सहायक हो सकते है। इस अवसर पर विभिन्न सत्रों के पोस्टर का पुरस्कार अघ्यक्ष डॉ धनखड़ के कर कमलों द्वारा प्रदान किया गया। धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक एवं संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ राजेश कुमार द्वारा दिया गया।
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