सुल्तानपुर: आज प्रवासी भारतीय दिवस उन महान व्यक्तित्वों को सम्मानित करने का अवसर है, जिन्होंने विदेश में रहते हुए भी भारत का नाम रोशन किया। ऐसे ही एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं डॉ. योगेश श्रीवास्तव, जिनकी कहानी मेहनत, लगन और भारतीय मूल्यों की मिसाल है।
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के पंचरस्ता क्षेत्र में एक साधारण परिवार में जन्मे डॉ. योगेश के पिता, श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव, 400 केवी बिजली विभाग में कार्यरत थे और 2006 में सेवानिवृत्त हुए हैं। डॉ. योगेश की प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती विद्या मंदिर, सुल्तानपुर में हुई। एक छोटे से शहर के स्कूल में पढ़ते हुए भी उनकी आंखों में बड़े सपने थे। विज्ञान के प्रति उनकी रुचि और पढ़ाई के प्रति समर्पण ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
अपने सपनों को पूरा करने के लिए डॉ. योगेश ने बायोटेक्नोलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल की और फिर चीन की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ऑफ चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज से पीएचडी पूरी की। उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय ने उन्हें अमेरिका तक पहुंचाया, जहां वे आज एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर, टेक्सास में पोस्टडॉक्टरल फेलो के रूप में कार्यरत हैं।
डॉ. योगेश का शोध मुख्य रूप से न्यूरोसाइंस और कैंसर अनुसंधान पर केंद्रित है। उन्होंने हेजहॉग सिग्नलिंग पाथवे पर गहन अध्ययन किया है, जो दर्द प्रबंधन और न्यूरॉन संरचना को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उनके शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रकाशित हो चुके हैं और वैज्ञानिक समुदाय में सराहे गए हैं।
भारतीय संस्कृति के संवाहक
विदेश में रहकर भी डॉ. योगेश अपने भारतीय मूल्यों और संस्कृति को नहीं भूले। वे हमेशा भारतीय त्योहारों और सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रहते हैं। उनका कहना है, "भारत की मिट्टी से जो संस्कार हमें मिले हैं, वे हमारी पहचान को हमेशा जिंदा रखते हैं। जहां भी जाऊं, मैं भारत का गौरव बनाए रखने का प्रयास करता हूं।"
डॉ. योगेश को उनकी उपलब्धियों के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें 2023 का डोडी पी. हॉन अवार्ड और 2018 का ग्वांगझोउ इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिसिन एंड हेल्थ द्वारा उत्कृष्ट छात्र पुरस्कार शामिल हैं। उनकी मेहनत और लगन हर उस युवा के लिए प्रेरणा है, जो सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े सपने देखने की हिम्मत करता है।
डॉ. योगेश का संदेश
डॉ. योगेश हमें यह सिखाते है कि अगर इरादे मजबूत हों और मेहनत का साथ हो, तो किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल की जा सकती है। सुल्तानपुर के छोटे से कस्बे से शुरू होकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचने का उनका सफर हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।
प्रवासी भारतीय दिवस पर डॉ. योगेश जैसे व्यक्तित्वों को याद करना इस बात का प्रमाण है कि भारत के संस्कार और शिक्षा न केवल देश के भीतर, बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ रहे हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सपने सिर्फ देखे नहीं जाते, पूरे भी किए जाते हैं।
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