सुलतानपुर: जहां एक ओर पर्यावरण को बचाने के लिए घर-घर हरियाली का संदेश दिया जा रहा है। वहीं जिले के अलग- अलग थानाक्षेत्रों में दर्जनों अवैध आरा मशीनें धड़ल्ले से चल रही हैं। जानकारी मिली है कि नियमों को ताक पर रखकर इन आरा मशीनों में हरे भरे पेड़ों की बलि चढ़ाई जा रही है। वहीं वन विभाग के अधिकारी पर्यावरण पर चलते कुल्हाड़ों की अनदेखी कर रहे हैं। जिसका नतीजा ये है कि अंकुश लगने की बजाय आए दिन अवैध आरा मशीनें बढ़ रही हैं।
दर्जन भर से ज्यादा आरा मशीनें अवैध
जानकारी के अनुसार जिले के कुड़ेभार, धनपतगंज, कुड़वार, बल्दीराय एवं दूबेपुर में करीब दर्जन भर से ज्यादा आरा मशीन अवैध रूप से संचालित की जा रही हैं। सूत्रों के अनुसार इनमें से दर्जन भर से ज्यादा मशीनें वन विभाग की ओर से बिना NOC और गैरलाइसेंसी हैं। इनके पास न लाइसेंस है और ना ही आरा मशीनें चलाने के लिए NOC।
माननीय उच्चतम न्यायालय नें भी वर्ष 2002 में अवैध आरा मशीनों पर रोक का आदेश दे चुका है। उसके बाद नए लाइसेंस देना तक बंद कर दिए गए हैं। इसके बावजूद भी क्षेत्र में दर्जनों अवैध आरा मशीनें नई चालू की जा चुकी हैं। जिन पर वन अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई।
विवरण रखना है, लेकिन जांच तक नहीं
लाइसेंसशुदा आरा मशीन संचालक को लकड़ी चीरने के दौरान वृक्ष का नाम, चिराई के बाद लकड़ी को बेचने और बचने वाली लकड़ी का विवरण रजिस्टर में अंकित करना होता है। इसके अलावा आरा मशीन परिसर में सूचना पट्ट पर मशीन के बारे में जानकारी, लकडिय़ों का स्टॉक तथा लाइसेंस रखना आवश्यक है। नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले आरा मशीन संचालकों के खिलाफ कार्रवाई तो दूर वार्षिक जांच तक समय पर नहीं की जाती है।
पीपल, आम, सागौन, बरगद व नीम भी कट रहे हैं
वन दरोगा और सर्किल इंचार्ज की मिलीभगत से क्षेत्र के लकड़ी माफियाओं के लिए यह मशीनें काफी फायदेमंद साबित हो रही हैं। जिले में ऐसे पेड़ों की भी कटान होती है, जो हरे अथवा प्रतिबंधित हैं। इनका परमिट भी वन विभाग से नहीं मिल पाता है। जैसे पीपल, बरगद, नीम, आम, सागौन, पाकड़, शीशम आदि कीमती पेड़ों की लकडिय़ां प्रतिबंधित होने के बावजूद काटी जा रही हैं। इन पेड़ों को काटने के बाद इनकी चिराई इन्हीं अवैध आरा मशीनों पर की जाती है। इनसे इन्हें लाइसेंस रद्द होने जैसी किसी बात का डर नहीं रहता।
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