किस्सा उस छात्र नेता जनेश्वर मिश्र का : जिसने अंग्रेजी पसंद नहीं आई तो ग्रेजुएशन में पास होने का नियम ही बदलवा डाला ।

      



लेखक: शुभम तिवारी

1967 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में तैराकी प्रतियोगिता हो रही थी। पहले की तरह अंग्रेजी में अनाउसमेंट शुरू हुआ तो एक लड़का पानी में कूद गया। जब तक उसे पकड़ने के लिए लोग पहुंचते उसने पानी से बाहर निकलकर अंग्रेजी के खिलाफ भाषण देना शुरू कर दिया। तैराकी प्रतियोगिता रुक गई। दोबारा जब शुरू हुई तो हिन्दी में अनाउसमेंट हो रहा था। समाजवादी छात्र खुश थे। कूदने वाला छात्र फूलचंद्र था। उसने जनेश्वर मिश्र के कहने पर ऐसा किया था।

सबसे पहले बात आंदोलन के शुरुआत की


अंग्रेजी की वजह से छात्र हो रहे थे फेल

1962 में हिन्दी भाषी राज्यों में अंग्रेजी को लेकर नाराजगी पैदा हुई। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के राम मनोहर लोहिया और जनेश्वर मिश्र ने इस नाराजगी को हवा दी तो यह विद्रोह में बदल गई। लोग कॉलेज कैंपसों से निकलकर सड़कों पर प्रदर्शन करने तक उतर गए थे। इसकी दो प्रमुख वजह थी।

  • ग्रेजुएशन में एक पेपर अंग्रेजी का अनिवार्य होता था। इसमें पास होना जरूरी होता था। हिन्दी भाषा का छात्र अंग्रेजी में फेल हो जाता था।
  • हिन्दी से पीएचडी करने वाले छात्रों को अपनी रिपोर्ट अंग्रेजी में टाइप करके जमा करनी होती थी, जो छात्रों के लिए चुनौती थी।

राष्ट्रपति को अंग्रेजी में बोलने से रोकते हुए कहा- आप हिन्दी में बोलें या तमिल में

1962 में राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को संयुक्त सदन में भाषण देना था। भाषण अंग्रेजी में होना तय था। उनका भाषण जैसे ही शुरू हुआ सोशलिस्ट पार्टी के 6 सांसदों ने राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में नारेबाजी शुरू कर दी। लोहिया का कहना था, "या तो आप हिन्दी में भाषण दीजिए या फिर अपनी मातृभाषा तमिल में। अंग्रेजी में नहीं चलेगा।"

अंग्रेजी के समर्थन में केंद्रीय मंत्री सी. सुब्रमण्यम ने इस्तीफा दे दिया

राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और अंग्रेजी में भाषण जारी रखा। सोशलिस्ट सांसदों ने सदन का बहिष्कार कर दिया। सदन के बाहर लोहिया ने कहा, "अंग्रेजी हटाओ का मतलब हिन्दी लाना नहीं, बल्कि अंग्रेजी का वर्चस्व हटाकर भारतीय भाषाओं को लाना है।" इस बात से केंद्रीय मंत्री सी. सुब्रमण्यम खफा थे। उन्होंने सरकार से इस्तीफा दे दिया।


आखिर अंग्रेजी के खिलाफ आंदोलन की वजह क्या थी, आइए इसे जानते हैं...


‘अंग्रेजी जाए, हिन्दी आए’

26 जनवरी 1950 को जब संविधान लागू हुआ था उस वक्त संविधान में प्रावधान था कि हिन्दी भारत सरकार के कामकाज की भाषा होगी। साथ ही अगले 15 साल तक अंग्रेजी भी साथ चलेगी। 1965 में जवाहर लाल नेहरू ने संविधान में संशोधन करके अंग्रेजी का काल 15 साल से बढ़ाकर अनिश्चितकालीन कर द्विभाषी फाॅर्मूला दिया। इसी के विरोध में समाजवादियों ने नारा दिया, 'अंग्रेजी जाए, हिन्दी आए।'

जनेश्वर की कद काठी अच्छी थी इसलिए हर बार गिरफ्तार कर लिए जाते

अंग्रेजी हटाओ अभियान की शुरुआत इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हुई थी। जनेश्वर मिश्र के अलावा जार्ज फर्नार्डिंस, मधु लिमये, कर्पूरी ठाकुर, रामानंद तिवारी और प्रभुनारायण सिंह शामिल थे। मुलायम सिंह भी शामिल थे लेकिन बतौर शिक्षक। एक बार सबकी गिरफ्तारी हुई तो प्रभुनारायण को भी गिरफ्तार कर लिया गया। जब पुलिस को पता चला कि प्रभु नारायण यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं तब जाकर सभी को छोड़ा।


जनेश्वर मिश्र आंदोलनों में सबसे आगे रहते थे। पुलिस की लाठियां जब भी चलनी शुरू हुई सबसे आगे जनेश्वर मिश्र मिले।

बिहार के गया में 31 दिसंबर 1967 को अंग्रेजी हटाओ आंदोलन को लेकर एक बैठक हुई थी। इस बैठक में जनेश्वर मिश्र के साथ राज नारायण भी थे। पुलिस को आशंका थी कि समाजवादी युवजन सभा के ये छात्र तोड़फोड़ कर सकते हैं। इसलिए वहां से लौटते वक्त वाराणसी के कैंट थाने की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। यहां से छूटने पर जनेश्वर मिश्र इलाहाबाद पहुंचे।

इलाहाबाद में आंदोलन किया तो पुलिस आ गई। बाकी साथी तो भाग गए लेकिन भारी शरीर होने के चलते जनेश्वर पकड़ लिए गए। पुलिस ने पहले लाठियों से पीटा उसके बाद गिरफ्तार कर लिया। जनेश्वर बनारस, पटना, इलाहाबाद, दिल्ली में कम से कम 6 बार गिरफ्तार किए गए थे।

कॉलेज के टाइपराइटर को उठा ले गए छात्र

1967 में अंग्रेजी का प्रभाव कुछ इस तरह था कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिन्दी साहित्य से PhD की रिपोर्ट अंग्रेजी में बनाकर जमा करनी होती थी। अंग्रेजी हटाओ आंदोलन चला तो यह खत्म हो गया।

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में भी ऐसा ही कुछ था। सारे टाइपराइटर अंग्रेजी में थे। समाज समाजवादी युवाजन सभा के विद्यार्थी सारे टाइपराइटर उठाकर आर्ट फैकल्टी के ऑडिटोरियम में रख आए। उसे इस शर्त पर वापस किया गया अब कॉलेज में हिन्दी के भी टाइपराइटर लाए जाएंगे।

इलाहाबाद के बाद बनारस यूनिवर्सिटी अंग्रेजी हटाओ आंदोलन की स्थली बनी। यहां प्रदर्शन के दौरान सबसे अधिक गिरफ्तारी हुईं।

आंदोलन को लेकर जनेश्वर का ‘उपद्रवी’ रूप भी नजर आया।

गुजरात गए तो जार्ज पंचम की मूर्ति तोड़ दी

राम मनोहर लोहिया के निधन के बाद जनेश्वर सबसे बड़े समाजवादी नेता थे। लोग छोटे लोहिया कहने लगे थे। 1967 में गुजरात के अहमदाबाद पहुंचे। रात में चार लोगों के साथ घूम रहे थे। नजर एक मूर्ति पर पड़ी। साथ के एक व्यक्ति ने बताया कि यह ब्रिटेन के किंग जार्ज पंचम की मूर्ति है। जनेश्वर बोले, "हमारे देश में इसका क्या काम।" इतना कहकर उसे तोड़ दिया। सुबह लोगों ने देखा तो हंगामा मच गया। गुजरात में समाजवादी नेताओं को लेकर लोगों का नजरिया बदल गया।

लखनऊ के हजरतगंज चौराहे पर पहले रानी विक्टोरिया की मूर्ति लगी थी। अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के दौरान जनेश्वर मिश्र ने साथियों के साथ मिलकर उस मूर्ति को तोड़ दिया। आज वहां महात्मा गांधी की मूर्ति लगी है।


सारे अंग्रेजी पोस्टरों पर कालिख पोत दी

बनारस यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के दौरान वहां के समाजवादी छात्रों ने मीटिंग की और तय किया कि जिले के उन सभी पोस्टरों को पोत दिया जाए जो अंग्रेजी में हैं। उत्साही छात्रों ने जिले के सभी पोस्टरों पर कालिख पोत दी। यह खबर अगले दिन इलाहाबाद, गोरखपुर, लखनऊ पहुंची। यहां के भी समाजवादी छात्रों ने रात में सभी पोस्टरों पर कालिख पोत दी।

समाजवादी छात्रों का यह आंदोलन सफल रहा। ग्रेजुएशन में अंग्रेजी के पेपर की बाध्यता खत्म हुई। हिन्दी पीएचडी की रिपोर्ट हिन्दी में जमा करने की अनुमति मिली। उन सभी जगहों पर हिन्दी मौजूद हो गई, जहां पर पहले सिर्फ अंग्रेजी हुआ करती थी।

Post a Comment

ज्योतिष

[ज्योतिष][carousel1 autoplay]

अपना सुलतानपुर

[अपना सुलतानपुर][carousel1 autoplay]

दि अन्नदाता

[दि अन्नदाता][carousel1 autoplay]

टेक्नोलॉजी

[टेक्नोलॉजी][carousel1 autoplay]

देश

[देश][carousel1 autoplay]

प्रदेश

[प्रदेश][carousel1 autoplay]

कारोबार

[कारोबार][carousel1 autoplay]

खेल समाचार

[खेल समाचार][carousel1 autoplay]
[blogger]

MKRdezign

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.
Javascript DisablePlease Enable Javascript To See All Widget