कथासार
‘लोग उदासी' एक असंगत या अब्सर्ड नाटक है, जिसमें समाज में बेमेल विवाह की समस्या को उठाया गया है पर कोई क्रमवार कथा या किस्सा नहीं है। चूंकि नाटक बेमेल विवाह की समस्या को उठाता तो है, बार-बार दोहराता है पर समस्या का कोई समाधान नहीं निकलता, बात जहाँ से शुरू हुई थी फिर वहीं पर पहुँच जाती है। और फिर पुनः किस्सा कहा जाता है। यह नाटक एक खेल की अवधारणा पर आधारित है। नाटक की भाषा काव्यात्मक है। नाटक एक खास लय (रिम्) में चलता है। नाटक का कथ्य यर्थाथवादी है पर शैली या फार्म का ट्रीटमेन्ट यर्थाथवादी नहीं है। चूंकि लोग-उदासी में बेमेल विवाह की परिणति एक खेल के रूप में होती है, जहाँ कोई नतीजा नहीं निकलता। अतः समाज इसे उदासीन भाव से यन्त्रवत् बस बार-बार खेलता रहता है। यह पूरा नाटक एक विवाह के अगल-अगल दृश्यों के कोलाज के रूप में उभर कर आता है।
निर्देशकीय
हर्ष का विषय है कि समन्वय संस्था अपने रजत जयंती वर्ष पर पहली बार एक असंगत (एब्सर्ड) नाटक 'लोग उदासी' का मंचन करने जा रही है। जैसा कि असंगत नाटकों में एक समस्या होती है और उसके भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। पर ऐसे नाटक कथा और रंग निर्देशों द्वारा बंधे नहीं होते। इनका स्वरुप एक लम्बी कविता की तरह होता है, जहाँ दृश्यों की शुरुआत या समाप्ति प्रकाश के होने या न होने से निर्धारित होती है। अतः ये नाटक एक निर्देशक के लिये चुनौतीपूर्ण होते हैं। इनमें प्रयोगों की असीम संभावना छिपी रहती है। इस नाटक के पूर्वाभ्यास के दौरान मैंने भी ऐसा ही अनुभव किया। हमने इसे बोझिलता से बचाने की पूरी कोशिश की है। गीत-संगीत का यथा संभव प्रयोग किया है। आपकी उपस्थिति हमारा मनोबल बढ़ायेगी, आपके सुझाव हमारे प्रयास को और बेहतरीन बनायेंगे ।
हम संगीत नाटक अकादमी नयी दिल्ली और श्री सुमन कुमार के आभारी है जिन्होंने संस्था को इस नाटक के मंचन का अवसर प्रदान किया।
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