धोखे में जी रहा गुलाब है....
सुना है सदियों से
गुलाब नवाबी शौक है...
शायद यही वजह है
गुलाब के इतराने की....
काँटो से घिरे होने पर भी,
खानदानी कहाने की....
तनिक गौर से देखो
मित्रों गुलाब के काँटो को
औंधे मुँह गिरे हुए, झुके हुए से....
चुभते हैं बड़े ही धोखे से
फिर भी देखो नवाब को...
काँटो के बीच
महफूज होने का गुमान है....
कमीने गुलाब पागल को
किसी ने प्यार की निशानी बता दिया
बस इसी ने गुलाब को
बदगुमानी बना दिया...
झूठ-मूठ में फैलाए है
समाज में प्रोपोगंडा...
खुद को खानदानी
बताने वाला गुलाब गंदा...
आशिकी में कली
गुलाब को कह दिया किसी ने
पैगाम मोहब्बत का.....
अब कौन बताए कि
खुद मोहब्बत भी....प
रिणाम है गंदी सोहबत का....
माना कि गुलाब में है,
बेशुमार मोहक खुशबू.....
पर आप ही बताओ
किसी का पेट भरा है
क्या कभी खुशबू से.....?
गर पता नहीं है तो पूछ लो
हरिया, माधव, जग्गू से...
मुफ़्त में फुलाए है सीना
अपने इत्र और जल गुलाब से
मालूम नहीं उसे शायद
गाँव वाले नहाते भी हैं
गंगा की आब से....
गाँव-देश में हमारे मिलते हैं
गुलाब तकिया और हाथ के पंखे
पर जनाब.... और
गाँव-देश में मित्रों
चम्पा, चमेली,बेला और कचनार के आगे....
नहीं चलती गुलाब की हेकड़ी....
यहाँ नहीं मिलते किताब के पन्नों के बीच
कभी सूखे गुलाब ....
आप इत्तेफाक रखते हैं
या नहीं रखते.....
पर.... मेरा दावा है.....
शहरों,महानगरों में धोखे में जी रहा गुलाब है......
धोखे में जी रहा गुलाब है......
रचनाकार.....
जितेन्द्र कुमार टुबे अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी
नगर, जौनपुर
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