गाज़ीपुर जनपद (उत्तर प्रदेश) के रायपुर गाँव की शांत-सुखद मिट्टी में 8 फ़रवरी 1991 की सुबह एक ऐसा बालक जन्मा, मानो किसी भोर की किरण ने मिट्टी में आशा का बीज रोप दिया हो। उस क्षण कोई नहीं जानता था कि यह साधारण-सा लगने वाला बालक आने वाले समय में संघर्ष, संकल्प और साधना की वह कथा गढ़ेगा, जिसे लोग मार्गदर्शक की तरह पढ़ेंगे। उसके जन्म के साथ मानो गाँव की हवा में एक मौन संकेत तैर गया मानो इस बालक की चाल में भविष्य की राहें छिपी हैं और उसकी आँखों में सपनों का एक शांत दीप जल रहा है।
चार पुत्रों और दो पुत्रियों के बीच सबसे छोटे तेज बहादुर मौर्य बचपन से ही ऐसी नैसर्गिक प्रखरता लिए हुए थे, जैसे किसी शांत झरने के भीतर गहराई से बहती बुद्धि की धारा हो। उनका स्वभाव संयमित, विचार परिपक्व और व्यवहार सौम्य था। गाँव के लोग उन्हें प्रेम-पूर्वक “गांधी जी” और “बुद्ध जी” कहकर पुकारते थे, क्योंकि उनके शब्दों में करुणा की मधुरता और निर्णयों में विवेक की स्पष्टता दिखती थी। उनकी आँखों में एक ऐसी मद्धिम पर दृढ़ चमक रहती थी, मानो वह वर्तमान के पन्नों को केवल पढ़ते ही नहीं, भविष्य के अध्यायों को भी समझ रहे हों।
जैसे ही उसकी उम्र ने दस वर्षों की दहलीज़ छुई, 11 जुलाई 1999 का दिन अचानक जीवन में एक ऐसा अध्याय बनकर आया जिसने पूरे परिवार की दिशा ही बदल दी। पिता चंद्रिका कुशवाहा का परिनिर्वाण उस घर के लिए किसी तूफ़ान की पहली गूँज जैसा था, एक ऐसा क्षण जिसने समय को दो हिस्सों में बाँट दिया। घर का आकाश मानो एक ही पल में सूना हो गया; आर्थिक कठिनाइयाँ, बढ़ती जिम्मेदारियाँ और भविष्य का अनिश्चित सन्नाटा एक साथ खड़े दिखाई देने लगे। माँ धानपति देवी ने उस शोक के बीच अपने छह बच्चों का हाथ थाम लिया, जैसे किसी टूटी नाव को डूबते जल में माँ के साहस ने किनारे की ओर मोड़ दिया हो। बड़ी बहनों और बड़े भाइयों ने भी उसी क्षण परिवार की डोर अपने हाथों में ले ली; किसी दीपक की लौ की तरह, वे आँधी में झुक तो गए, पर बुझे नहीं। उन्होंने घर को बिखरने नहीं दिया, बल्कि अपने त्याग और एकजुटता से उसे संभाले रखा।
पिता के परिनिर्वाण के बाद यह परिवार अभावों के बीच भी ऐसी अद्भुत एकता में ढल गया, जैसे कोई टूटा हुआ तंबूरा फिर भी एक ही सुर में गूँजने लगे। कुछ वर्षों के भीतर बड़े भाई ने परिवार की जिम्मेदारियों को इस दृढ़ता से सँभाला कि मानो घर की नींव को फिर से थाम लिया हो। दूसरी ओर, बहनें अपने ससुराल में रहते हुए भी तन-मन-धन से निरंतर सहयोग देती रहीं; उनका यह योगदान किसी दूर बसे दीपक की तरह था, जिसकी रोशनी घर तक पहुँचती रहती थी। यह सम्बन्धों का सामान्य निर्वाह नहीं था; यह त्याग, संस्कार और समर्पण की वह जीवित परम्परा थी जिसने परिवार को टूटने नहीं दिया। समय की कठिन राहों पर चलते हुए भी यह परम्परा परिवार को भीतर से बल देती रही और धीरे-धीरे उसे अधिक सुदृढ़ बनाती चली गई।
उसका बचपन अभावों की कड़ी धूप में गुज़रा, पर उसके सपनों पर कभी धूल नहीं जमी। कच्चे घर की मिट्टी, सीमित साधन, फटी किताबें और लालटेन की झिलमिलाती लौ, ये सब उसके लिए किसी बोझ की तरह नहीं थे, बल्कि उसी लौ में वह अपनी राह का दीप देखता था। उसने पढ़ाई को केवल काम नहीं, अपनी साधना मान लिया। जहाँ कई बच्चे परिस्थितियों की कठोरता से टूट जाते, वहाँ उसने मन ही मन यह बात थाम ली कि “मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता।” गाँव की पगडंडियों पर उसके छोटे-छोटे कदम मानो भविष्य की किसी अदृश्य राह को गढ़ रहे थे। स्कूल की पुरानी सीढ़ियाँ उसके लिए किसी मंदिर की सीढ़ियों की तरह थीं, जहाँ हर दिन वह ज्ञान के सामने सिर झुकाकर आगे बढ़ता। उसके हर कदम में यह भरोसा छिपा था कि चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो, दृढ़ संकल्प का एक बीज समय के साथ पेड़ बनकर ही रहता है।
धीरे-धीरे उसके भीतर यह विचार गहराई पकड़ता गया कि शिक्षा केवल व्यक्तिगत उन्नति का साधन नहीं, बल्कि समाज की दिशा बदलने वाली शक्ति है। यह सोच उसके भीतर ऐसी जड़ें जमाती चली गई कि आगे चलकर पूरे परिवार के निर्णयों और दृष्टि का आधार बन गई। वर्ष 2008 से, अभावों के बीच रहते हुए भी परिवार ने एक दृढ़ संकल्प अपनाया कि घर के किसी भी बच्चे की पढ़ाई बीच में नहीं रुकेगी। भाइयों और बहनों ने अपनी कठिन परिस्थितियों को पीछे रखते हुए बच्चों को शहर में रखकर शिक्षा दिलाने की राह चुनी। उनका यह प्रयास किसी दीप-शृंखला की तरह था, जहाँ एक दीपक दूसरे को रोशन करता चला गया। इन सबके केंद्र में उसकी शिक्षा-सम्बंधी जागरूकता और उसकी दूरदृष्टि ही थी, जिसने पूरे परिवार को इस दिशा में प्रेरित किया कि ज्ञान ही वह विरासत है जो पीढ़ियों को समृद्ध करती है।
वह केवल अपने लिए पढ़ने वाला बालक नहीं रहा; समय के साथ वह विचार का वह स्रोत बन गया, जिसकी धार से कई रास्तों को दिशा मिलती गई। गाँव और रिश्तेदारी के बच्चों को पढ़ाई की ओर लौटाना, उन्हें शहर ले जाकर स्कूलों में दाखिला करवाना, रहने-खाने की व्यवस्था में साथ खड़ा होना, यह सब उसके स्वभाव का हिस्सा बन गया। वह एक विद्यार्थी भर नहीं था; वह मार्गदर्शन की उस प्रकाश-रेखा की तरह था, जो धुंध में भी रास्ता दिखाती है। उसके मार्गदर्शन से अनेक बच्चे फिर से शिक्षा की पगडंडी पर लौटे, आत्मविश्वास पाया और अपनी-अपनी मंज़िल की ओर बढ़ते गए। उसके भीतर मानो ऐसा दीप जलता था, जिसकी रोशनी किसी एक कमरे तक सीमित नहीं थी; वह आसपास के जीवनों को भी उजाला देती चलती थी।
समय के साथ उसका संसार निरंतर विस्तृत होता गया। इंटर कॉलेज से लेकर स्नातक और परास्नातक तक की यात्रा किसी समतल पथ की तरह नहीं थी; उसमें कठिन मोड़, अनिश्चित विराम और कई बार ऐसी खामोश घड़ियाँ भी थीं, जहाँ केवल धैर्य ही सहारा बनता है। फिर भी वह हर चुनौती को इस संतुलन से पार करता रहा, मानो मार्ग की कठोरता से अधिक उसे अपने भीतर का विश्वास आगे ले जा रहा हो। धीरे-धीरे यह भावना दृढ़ होती गई कि ग्रामीण परिवेश के बच्चों की राह केवल पुस्तकें न मिल पाने से नहीं रुकती। उनके भीतर आत्मविश्वास का टूटना, सामाजिक सहारा का अभाव और मानसिक संतुलन का डगमगाना भी उतना ही बड़ा अवरोध होता है। यही समझ उसके जीवन का उद्देश्य बनकर उभरती गई।
आज भी वह अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों तक सीमित रहना नहीं चाहता; उसका विचार है कि शिक्षा के माध्यम से समाज की मिट्टी इतनी सुदृढ़ बने कि प्रत्येक बच्चा बिना भय और संकोच के अपनी राह चुन सके। उसका विश्वास है कि ज्ञान का दिया केवल एक व्यक्ति का नहीं होता—उसकी रोशनी आसपास के अंधेरों को भी बदल सकती है।
संघर्षों की उसी लंबी श्रृंखला के बीच वह शोध की दुनिया में प्रवेश करता है। अपने जीवन के अनुभवों को ही शोध-दृष्टि का आधार बनाते हुए, वह मनो-सामाजिक कारकों और विद्यार्थियों की सीखने की प्रक्रिया के बीच नाजुक संबंधों को अपने अध्ययन का विषय बनाता है। यह केवल एक अकादमिक विषय नहीं, बल्कि उसके स्वयं के जीवन की प्रतिछाया है। कई बार कठिनाइयाँ आईं, कई बार परिस्थितियाँ निराशा की सीमा तक पहुँच गईं, फिर भी उसने कभी हार नहीं मानी, क्योंकि वह यह जान चुका था कि “जो रुक जाता है, वही सच में हार जाता है।”
अंततः वर्षों के संघर्ष, त्याग और तपस्या का वह क्षण आया, जिसने सारी मेहनत और संघर्ष को सार्थक बना दिया। 12 दिसंबर 2025 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय से उसे डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई। यह केवल एक डिग्री नहीं थी; यह उस बालक की जीत थी, जिसने अभावों के बीच ज्ञान को अपना सबसे बड़ा सहारा बनाया। यह उसकी माँ की तपस्या की जीत थी, उसकी बहनों के त्याग की जीत थी, उसके भाइयों के परिश्रम की जीत थी, और उस पूरे परिवार की जीत थी, जिसने कभी हार मानना नहीं सीखा। यह क्षण केवल व्यक्तिगत उपलब्धि का प्रतीक नहीं, बल्कि यह विश्वास का द्योतक था कि संघर्ष की राह चाहे कितनी भी कठिन हो, दृढ़ संकल्प और एकजुटता के साथ हर चुनौती को पार किया जा सकता है।
अपने शैक्षणिक सफर में उन्होंने एम.ए. (अंग्रेजी), एम.एड., पीजीडीएचई, योग प्रमाणपत्र, सीसीसी, यूजीसी- नेट, सीटीईटी, यूपीटीईटी और एसटीईटी जैसी अनेक डिग्रियाँ और प्रमाणपत्र हासिल किए, जो उनके शिक्षा के प्रति अनवरत समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति का जीवंत प्रमाण हैं।
अपने समाज में वह डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त करने वाले पहले युवक बने। यह उपलब्धि केवल व्यक्तिगत सम्मान नहीं, बल्कि पूरे गाँव, क्षेत्र और समाज के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन गई। उन्होंने कभी भी इस सफलता को अकेले अपना श्रेय नहीं माना। वह सदा यही कहते हैं कि “जो संघर्ष में हमारा हाथ थामे रखे, वे ही हमारी असली शक्ति हैं।”
आज यह परिवार सामाजिक, आर्थिक और वैचारिक रूप से पहले से कहीं अधिक सशक्त होता जा रहा है। शिक्षा ने न केवल इसे एक नई पहचान दी है, बल्कि जीवन की नई दिशा भी दिखाई है। सच ही कहा गया है कि “शिक्षा वह शेरनी का दूध है, जो जितना पीयेगा वह उतना दहाड़ेगा”। इस परिवार ने वह दूध केवल पिया ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का दृढ़ संकल्प भी लिया है। आज भी वह स्वयं को सीखने की प्रक्रिया में लगा एक साधारण विद्यार्थी ही मानता है। उसका लक्ष्य किसी पद या उपाधि तक सीमित नहीं है; यह उस व्यापक जिम्मेदारी से जुड़ा है, जो आने वाली पीढ़ियों को सही दिशा देने और उन्हें सशक्त बनाने से संबंधित है। वह सहायक आचार्य बनने के अपने लक्ष्य की ओर निष्ठा और परिश्रम के साथ अग्रसर है, और इसी प्रयास में अपने समाज और परिवार के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता जा रहा है।
उसकी जीवन-यात्रा हमें यह सिखाती है कि गरीबी कमजोरी नहीं, संघर्ष अभिशाप नहीं, और अभाव अंत नहीं होते। ये केवल वे सीढ़ियाँ हैं, जिन पर चढ़कर मनुष्य अपनी मंज़िल तक पहुँचता है। उसकी कहानी हर उस व्यक्ति की कहानी है, जो सीमित साधनों के बावजूद असीम सपने देखने का साहस रखता है और अपने विश्वास और परिश्रम से उन्हें साकार करता है।
मशहूर शायर साहिर लुधियानवी साहब का ये शेर तेजबहादुर जी के जीवन को चरितार्थ करता है-
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें, वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
“फूल बेचने वाले के हाथों में खुशबू रह ही जाती है।” उसी तरह, तेजबहादुर जी के जीवन से शिक्षा की सुगंध, संस्कार की महक और संघर्ष की प्रेरणा निरंतर बहती रहेगी। यही उनकी वास्तविक, जीवंत और अमर सफलता है। एक ऐसी विरासत, जो पीढ़ियों तक प्रकाश और मार्गदर्शन देती रहेगी।
स्रोत एवं स्वीकृति: यह आलेख डॉ. तेज बहादुर मौर्य द्वारा स्वयं प्रदत्त जानकारी पर आधारित है तथा उनकी लिखित अनुरोध से प्रकाशित किया जा रहा है। सभी तथ्यों की जिम्मेदारी सूचना प्रदाता की है।
सुलतानपुर, 13 Nov 2025, 07:16 PM
जिले के तिकोनिया पार्क से पंत स्टेडियम रोड पर स्थित अमीना ताइक्वांडो एकेडमी में इन दिनों जोश और अनुशासन का अनोखा संगम देखने को मिल रहा है। एकेडमी में कुशल और अनुभवी प्रशिक्षकों के मार्गदर्शन में लगभग साठ ताइक्वांडो खिलाड़ी अपनी-अपनी बेल्ट परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हुए हैं।यहां व्हाइट बेल्ट से लेकर ब्लैक बेल्ट तक की ट्रेनिंग दी जा रही है। विशेष रूप से, आठ खिलाड़ी रेड वन से ब्लैक बेल्ट अर्जित करने की तैयारी में हैं, जबकि तीन खिलाड़ी रेड से रेड वन बेल्ट की परीक्षा देने जा रहे हैं। सभी खिलाड़ी प्रतिदिन कठिन अभ्यास कर अपने लक्ष्य को पाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।प्रशिक्षकों के निर्देशन में खिलाड़ियों को पूंजे (Poomsae), सेल्फ डिफेंस और ब्रेकिंग जैसी विधाओं में निपुण बनाया जा रहा है। अगली बेल्ट हासिल करने के लिए उन्हें शारीरिक प्रदर्शन के साथ लिखित परीक्षा में भी श्रेष्ठ प्रदर्शन करना होगा।एकेडमी के प्रशिक्षिका नेशनल गोल्ड मेडलिस्ट अमीना बानो खिलाड़ियों की मेहनत और समर्पण से बेहद संतुष्ट हैं। उनका कहना है कि बच्चों में अनुशासन और आत्मविश्वास तेजी से बढ़ा है, और उनमें उच्चस्तरीय प्रतियोगिताओं में सफलता पाने की क्षमता दिखाई दे रही है।वहीं अभिभावकों ने भी प्रशिक्षकों की मेहनत की सराहना की। उनका कहना है कि “अमीना ताइक्वांडो एकेडमी" में हर बच्चे पर व्यक्तिगत ध्यान दिया जाता है। यहां प्रशिक्षण के साथ आत्मरक्षा और शारीरिक फिटनेस पर भी समान रूप से फोकस किया जाता है, जो बेहद सराहनीय है।”इस समय अकादमी के प्रशिक्षक और खिलाड़ी दोनों ही आगामी बेल्ट परीक्षाओं को लेकर पूरी तरह तैयार हैं। अमीना ताइक्वांडो एकेडमी धीरे-धीरे जिले में ताइक्वांडो प्रशिक्षण का एक प्रमुख केंद्र बनती जा रही है और यहां के खिलाड़ी भविष्य में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने को तत्पर हैं।
दोस्तपुर संवाद सूत्र, 13 Nov 2025, 06:30PM
भाग्यवती घनश्याम सरस्वती शिशु मंदिर, दोस्तपुर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर कथा व्यास श्री हरि मंगल पाराशर दास जी महाराज ने कहा कि भागवत कथा का श्रवण मन का शुद्धिकरण करता है, जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश करता है और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने बताया कि कलयुग में कथा श्रवण ही मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग है, जो अन्य युगों में कठिन था।
कार्यक्रम के प्रारंभ में कथा व्यास का पूजन बबलू जायसवाल, पिंकी जायसवाल, राजकुमार सोनकर, कृष्ण चंद्र बरनवाल, मन्नू सेठ, अर्चना मिश्रा और दिनेश त्रिपाठी द्वारा किया गया।
कथा की व्यवस्था प्रभाकर दास जी महाराज के निर्देशन में की जा रही है। उन्होंने भक्तों से अधिक से अधिक संख्या में कथा श्रवण कर पुण्य लाभ अर्जित करने का आह्वान किया।
कथा में बबलू जायसवाल, दिनेश त्रिपाठी, बिंदा जायसवाल, राजू जायसवाल, मनीष अग्रहरि, राजकुमार सोनकर, राजेश द्विवेदी, धीरेंद्र सिंह, मीरा तिवारी, साहब राम मोदनवाल, सुभाष मोदनवाल, दिनेश तिवारी, हनुमान पांडे, शशि बरनवाल, अर्चना मिश्रा, विवेक तिवारी और अभय सोनी सहित अनेक धर्मप्रेमी श्रद्धालु उपस्थित रहे। यह दिव्य कथा 19 नवंबर तक जारी रहेगी।
बांदा। बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा में आयोजित 11वें दीक्षांत समारोह में जनपद रामपुर के ग्राम अनवा, तहसील शाहाबाद निवासी अजय कुमार शर्मा, पुत्र श्री रविन्द्र कुमार शर्मा को सब्जी विज्ञान (Vegetable Science) विषय में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (Ph.D.) की उपाधि प्रदान की गई।
समारोह की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश की माननीय राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय की कुलाधिपति श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने की। मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली के निदेशक डॉ. चेरूकुमल्ली श्रीनिवास राव उपस्थित रहे, जिन्होंने अपने करकमलों से अजय शर्मा को उपाधि प्रदान की।
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि “शिक्षा और अनुसंधान ही देश की प्रगति की कुंजी हैं। युवा शोधकर्ताओं को अपने ज्ञान को समाज और किसानों के हित में उपयोग करना चाहिए।”
मुख्य अतिथि डॉ. राव ने कहा कि “कृषि अनुसंधान तभी सफल होता है जब उसका लाभ सीधे किसानों तक पहुंचे। नवाचार और व्यावहारिक अनुसंधान से ही कृषि क्षेत्र में स्थायित्व लाया जा सकता है।”
कृषि अनुसंधान में विशेष योगदान
अजय कुमार शर्मा वर्तमान में भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR), वाराणसी में कार्यरत हैं। वे चौलाई (Amaranthus) की आयरन-समृद्ध किस्मों तथा गर्मी में अधिक उपज देने वाले टमाटर की प्रजातियों पर शोध कर रहे हैं। उनका यह कार्य पोषण सुरक्षा के साथ-साथ किसानों की आय में वृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो रहा है।
अजय शर्मा का वक्तव्य
अजय शर्मा ने कहा, “यह सम्मान मेरे जीवन का गर्वपूर्ण क्षण है। मैं इस उपलब्धि का श्रेय अपने स्वर्गीय दादा श्री अवतारी लाल शर्मा, अपने माता-पिता, गुरुजनों और मित्रों को देता हूँ, जिनके आशीर्वाद से यह संभव हो पाया।”
विश्वविद्यालय की गौरवपूर्ण परंपरा
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने स्थापना के बाद से ही कृषि शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया है। समारोह में कुलपति और संकाय सदस्यों ने विद्यार्थियों को बधाई दी और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
स्थानीय गर्व का अवसर
अजय शर्मा की इस सफलता से न केवल उनके परिवार में हर्ष का वातावरण है, बल्कि पूरा रामपुर जनपद गर्व महसूस कर रहा है। उनकी उपलब्धि युवा शोधार्थियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी है।
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| फाइल फोटो, डॉ योगेश श्रीवास्तव |
MD Anderson से नई ऊँचाई की ओर भारतीय मूल के वैज्ञानिक की उड़ान
भारतीय मूल के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक डॉ. योगेश श्रीवास्तव को अमेरिका के प्रतिष्ठित University of Texas Health Science Center at Houston (UTHealth Houston) के McWilliams School of Biomedical Informatics में सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट नियुक्त किया गया है। यह उपलब्धि उनके करियर का महत्वपूर्ण पड़ाव है, जिसे उन्होंने MD Anderson Cancer Center में पोस्टडॉक्टोरल फेलो के रूप में सफल अनुसंधान कार्य के बाद प्राप्त किया है।
शिक्षा और शोध की गौरवशाली यात्रा
फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) से निकलकर डॉ. श्रीवास्तव ने जीव विज्ञान में स्नातक (2006, डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय), जैव प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर (2009, HNB गढ़वाल विश्वविद्यालय) और फिर चीनी सरकार की छात्रवृत्ति पर University of Chinese Academy of Sciences से पीएचडी (बायोकेमिस्ट्री एवं आणविक जीव विज्ञान, 2020) की। इसके बाद उन्होंने MD Anderson Cancer Center, ह्यूस्टन में प्रो. गाल्को के मार्गदर्शन में Hedgehog (Hh) signaling pathway पर शोध किया, जो दर्द संवेदना और न्यूरोडेवलपमेंट के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पुरस्कार और उपलब्धियाँ
भारत और विदेश में योगदान
अमेरिका जाने से पूर्व डॉ. श्रीवास्तव ने भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों —AIIMS नई दिल्ली, NICPR नोएडा और ICAR-IIVR वाराणसी में सीनियर रिसर्च फेलो के रूप में कार्य किया। वे जर्मनी के सारलैंड विश्वविद्यालय में विजिटिंग साइंटिस्ट भी रहे। साथ ही उन्होंने ICMR-INSERM बायोबैंक की स्थापना में योगदान दिया और 50+ छात्रों को बायोइंफॉर्मेटिक्स की शिक्षा दी।
UTHealth Houston में सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट के रूप में डॉ. श्रीवास्तव अब बायोमेडिकल इंफॉर्मेटिक्स और स्वास्थ्य तकनीक अनुसंधान में अग्रणी परियोजनाओं का नेतृत्व करेंगे।फैजाबाद से शुरू हुई शैक्षणिक यात्रा का ह्यूस्टन तक पहुँचना भारतीय वैज्ञानिक क्षमता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। डॉ. योगेश श्रीवास्तव की यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत करियर की बड़ी छलांग है, बल्कि विश्व मंच पर भारतीय वैज्ञानिक समुदाय की साख को और मजबूत करती है।
सुल्तानपुर। शिक्षा के क्षेत्र में सुल्तानपुर जनपद ने एक बार फिर उपलब्धि हासिल की है। अवध विश्वविद्यालय की बीएड फाइनल परीक्षा 2025 में जिले के अखिल दुबे ने टॉप कर पूरे क्षेत्र का मान बढ़ाया है।
अखिल दुबे, जो कि प्रख्यात अध्यापक राघवराम दुबे के पुत्र हैं, ने अपनी लगन और मेहनत से यह सफलता अर्जित की। उन्होंने सत्र 2023-24 में आंबेडकर नगर स्थित कल्पना शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान में बीएड की पढ़ाई प्रारंभ की थी।
26 अगस्त को जारी परिणाम में अखिल ने कुल 500 में से 443 अंक प्राप्त कर विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान हासिल किया।
उनकी इस उपलब्धि से परिवार, गुरुजन और संस्थान में हर्ष की लहर है। संस्थान के प्राचार्य व शिक्षकों ने कहा कि अखिल की यह सफलता अनुशासन और परिश्रम का परिणाम है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगी।
प्रयागराज: अधिवक्ता विजय कुमार द्विवेदी और जल योद्धा आर्य शेखर की अगुवाई में आज गोविंदपुर, प्रयागराज में “जान चौपाल” का आयोजन किया गया। चौपाल का प्रमुख मुद्दा था – प्रयागराज में एम्स (AIIMS) की स्थापना।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में वरिष्ठ नागरिकों और युवाओं ने भागीदारी की और एम्स की स्थापना को जनहित में आवश्यक बताते हुए समर्थन में जोरदार हुंकार भरी।
चौपाल में वक्ताओं ने कहा कि प्रयागराज जैसे ऐतिहासिक, धार्मिक और शैक्षणिक महत्व के नगर को उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं की सख्त आवश्यकता है। एम्स की स्थापना से न केवल प्रयागराज बल्कि पूरे पूर्वांचल के लाखों लोग लाभान्वित होंगे।
युवाओं ने इसे जनता का अधिकार बताते हुए आंदोलन को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया, वहीं वरिष्ठ नागरिकों ने इसे स्वास्थ्य सुरक्षा का सबसे बड़ा कदम बताया।
चौपाल के अंत में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि एम्स की मांग को लेकर जनजागरण अभियान और तेज किया जाएगा।
इस कार्यक्रम में अधिवक्ता ऋषभ उपाध्याय, हर्षित तिवारी, मयंक द्विवेदी, शिवम् सिंह, समेत दर्जनों स्थानीय नागरिक मौजूद रहे।
शैक्षणिक उत्कृष्टता और नेतृत्व क्षमता का राष्ट्रीय सम्मान
शुभम तिवारी
प्रो. स्वाई का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान चार दशकों से भी अधिक का रहा है। वर्ष 2007 में उन्होंने बीएचयू में प्रोफेसर के रूप में कार्यभार ग्रहण किया और तब से शिक्षा संकाय में उन्होंने ज्ञान, अनुसंधान और नैतिक मूल्यों के समन्वय को सशक्त बनाया। जून 2020 से मई 2023 तक संकाय प्रमुख (डीन) के रूप में उन्होंने संकाय को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विशिष्ट पहचान दिलाई।
उनके कार्यकाल में न केवल शोध की गुणवत्ता में वृद्धि हुई, बल्कि अकादमिक अनुशासन, नवाचार और समावेशी शिक्षा की अवधारणाओं को भी नई दिशा मिली। उनके नेतृत्व में शिक्षा संकाय शैक्षणिक उत्कृष्टता का आदर्श बन गया, जिससे छात्र, शोधार्थी और संकाय सदस्य सभी प्रेरित हुए।
ओड़िशा से आने वाले प्रो. स्वाई ने सदैव भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक शैक्षणिक दृष्टिकोण से जोड़ा है। उनकी यह नियुक्ति यह संकेत देती है कि देश की केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रणाली अब अनुभवी शिक्षकों को नेतृत्व सौंप कर नई दिशा की ओर अग्रसर है।
सिक्किम विश्वविद्यालय को मिलेगा मजबूत नेतृत्व:
प्रो. स्वाई जैसे दूरदर्शी कुलपति के नेतृत्व में सिक्किम विश्वविद्यालय में गुणवत्ता आधारित शैक्षणिक सुधार, अनुसंधान में नवाचार, और विद्यार्थियों की समग्र उन्नति सुनिश्चित होगी।
बीएचयू परिवार के लिए यह नियुक्ति एक प्रेरणा है, जो यह सिद्ध करती है कि यहां का शिक्षण वातावरण, नेतृत्व विकास और अनुसंधान की संस्कृति देश के उच्च शैक्षणिक पदों तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करती है।
जन-जागरण हेतु काव्य प्रस्तुति
रचयिता – विजय तिवारी
(समाजसेवी, समालोचक, पूर्वांचल न्याय मंच)
।।पुर्वांचल और पलायन ।।
(अविकसित पिछड़ा पुर्वांचल का दर्द)
विकास से अछूता जब-तक पुर्वांचल रहेगा,
विकास का हर वादा अधूरा रहेगा ।
हर घर से पलायन जब-तक न रुकेगा,
विकास का बाजा झूठा बजेगा ।
विकास का हर स्वप्न अधूरा रहेगा ,
नौकरी युवाओं को जब-जक न मिलेगा।
शिक्षा का हर उद्देश्य अधूरा रहेगा,
युवा जब-तलक बेरोज़गार रहेगा ।
नोएडा जैसे विकास पुर्वांचल को कब मिलेगा,
सौतेले का डंस हम और न सहेगा।
हर घर को रोशनी तभी मिलेगी ,
जब विकास की गाड़ी पुर्वांचल में चलेगी।
बेरोज़गारी जब- तक हर घर में रहेगी,
हर घर से मैयत उठतीं रहेंगी।
पुर्वांचल जब तक न सुधरेगा,
मानवता का हर चेहरा कलंकित रहेगा।
न्याय जब तक न हमको मिलेगा,
स्वतंत्रता का अर्थ अधूरा रहेगा।
विकास से अधूरा जब-तक पूर्वांचल रहेगा,
हर श्राप सत्ता को लगता रहेगा।
हर पार्टी का सर शर्म से झुकता रहेगा,
दौरा जब- जब वह पुर्वांचल का करेगा।
विकास से अछूता जब-तक पुर्वांचल रहेगा,
विकास का हर वादा अधूरा रहेगा।।
पूर्वांचल न्याय मंच का संदेश स्पष्ट है:
“हमें भी चाहिए शिक्षा, रोज़गार और न्याय –
वरना हर बार चुनाव में केवल मौन नहीं, प्रतिकार होगा!”
स्ट्रॉबेरी पर नैनो यूरिया के प्रभाव संबंधी शोध रहा चर्चा में, डॉ. साकेत मिश्र के निर्देशन में किया उत्कृष्ट कार्य ।
वाराणसी।
काशी की ज्ञान-परंपरा में एक और सुनहरा अध्याय जुड़ गया है। वाराणसी निवासी और यूपी कॉलेज, वाराणसी में वाणिज्य संकाय के प्रोफेसर रहे डॉ. अवधेश सिंह के पुत्र अतुल कुमार सिंह ने फल विज्ञान (Pomology) विषय में शोध कार्य पूर्ण कर विद्या वाचस्पति (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त की है।
अतुल कुमार सिंह का शोध विषय "Effect of different levels of nano urea on growth, yield and quality of strawberry (Fragaria × ananassa) cv. Winter Dawn under Prayagraj agro climatic condition" रहा, जिसमें उन्होंने प्रयागराज की जलवायु में स्ट्रॉबेरी की फसल पर नैनो यूरिया के विभिन्न स्तरों के प्रभावों का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया।
यह शोध समकालीन बागवानी तकनीकों, सतत कृषि और पोषण गुणवत्ता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। उन्होंने यह कार्य समकालीन उद्यान विज्ञान के विशेषज्ञ डॉ. साकेत मिश्र के निर्देशन में शुआट्स (SHUATS), प्रयागराज में सम्पन्न किया।
शोध कार्य की गुणवत्ता, व्यवहारिक उपयोगिता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय ने उन्हें विद्या वाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया। इस सफलता पर उनके परिवार, शोध निर्देशक, शैक्षणिक समुदाय और मित्रों में हर्ष की लहर है।
शोधकर्ता अतुल कुमार सिंह की यह उपलब्धि ना केवल उनके व्यक्तिगत परिश्रम का परिणाम है, बल्कि यह युवाओं के लिए शोध एवं नवाचार के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत भी है। वाराणसी के शैक्षणिक और बौद्धिक जगत में उनकी इस उपलब्धि की सराहना
हो रही है।
शांति के हर प्रयास को इस कुटिल कौरव ने छल से कुचला है।
ये वही गजनी, गोरी प्रवृत्ति है जिसने अतीत में गायों को ढाल, और स्त्रियों को कवच बना धर्म के खिलाफ अधर्म का युद्ध लड़ा था।
रामचरितमानस में प्रातः स्मरणीय तुलसीदास जी चेताते हैं -
"सठ सुधरहिं न प्रीति बिनु, भय बिनु नहिं प्रीत।
बिनु प्रीति भय होइ नहीं, विनय न मान खल कीत॥"
(दुष्ट न प्रेम से सुधरते हैं, न विनय से; उन्हें केवल दंड ही रास्ते पर लाता है।)
तो क्या बार-बार छल सहें?
नहीं! अब श्री राम जी जैसा निर्णय लेना होगा।
जिस दिन भारत ने यह ठान लिया कि
"अब कीजै निपट निपात।
शठ सुधरहिं न पारिनहिं प्रीति , विनय न सज्जन जानत भीति॥"
(दुष्ट विनय से, प्रेम से या ज्ञान से नहीं, सिर्फ दंड से सुधरते हैं)
उसी दिन निर्णायक विजय की आधारशिला रखी जाएगी।
अब यह सवाल नहीं रह गया कि "क्या युद्ध होगा?"
अब यह तय करना है -
"कब और कैसे, ताकि निर्णायक हो?"
शांति तभी पवित्र होती है जब उसका आधार धर्म और न्याय हो,
छल और आतंक के साथ नहीं।
क्या अब समय आ गया है?
जब दुश्मन शांति को कमजोरी समझे,
जब हर सीज़फायर के पीछे छुपा हो कोई साज़िश,
जब हर बातचीत के बाद सीमा पर लहू बहाया जाए—
तो युद्ध सिर्फ उत्तर नहीं, कर्तव्य बन जाता है।
“मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी ने भी युद्ध का मार्ग तब चुना जब मर्यादा का अपमान हुआ।
अब भारत को भी रामधनुष उठाना होगा।”
भारत अब निर्णायक मोड़ पर है—
युद्ध होगा – क्योंकि अब रण ही शांति का एकमात्र रास्ता है।
पाकिस्तान को अब वही उत्तर चाहिए जो राम ने रावण को दिया था , भगवान श्रीमुरलीधर ने कौरवों को दिया था -
शक्ति से, धर्म से, और निर्णायक युद्ध से!
“जब शांति को कायरता समझा जाए,
तब रण ही धर्म होता है।”
जयतु भारतम , वंदे भारत मातरम
विषय: "Advertising Promotion & Other Aspects of Integrated Marketing Communications"
अयोध्या:डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के व्यवसाय प्रबंध एवं उद्यमिता विभाग के सहायक आचार्य डॉ. प्रवीण कुमार राय द्वारा रचित पुस्तक "Advertising Promotion & Other Aspects of Integrated Marketing Communications" हाल ही में प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक एकीकृत विपणन संप्रेषण (Integrated Marketing Communication) के विविध पहलुओं पर गहन दृष्टि प्रदान करती है और समकालीन विज्ञापन व प्रचार तकनीकों को समझने में पाठकों की सहायता करती है।
पुस्तक में पारंपरिक से लेकर डिजिटल विज्ञापन तक की प्रवृत्तियों, उपभोक्ता व्यवहार, ब्रांड संप्रेषण, प्रमोशनल मिक्स, और पब्लिक रिलेशन्स के व्यावहारिक और अकादमिक पहलुओं को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया गया है। यह कृति प्रबंधन एवं विपणन के विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं तथा उद्योग जगत के पेशेवरों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।
पुस्तक के प्रकाशन पर विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हिमांशु शेखर सिंह सहित प्रोफेसर शैलेन्द्र वर्मा, प्रोफेसर राणा रोहित, डॉ. कपिल देव, डॉ. अनुराग तिवारी, डॉ. निमिष मिश्रा, डॉ. दीपा सिंह एवं डॉ. राम जीत सिंह ने डॉ. राय को बधाई दी। इसके अतिरिक्त विभाग के अनेक शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने भी उन्हें इस शैक्षणिक उपलब्धि पर शुभकामनाएं दीं और इसे विभाग की बौद्धिक उपलब्धियों में एक महत्वपूर्ण योगदान बताया।
पहलगाम की बर्फीली वादियों में,
शांति की चादर फटी अचानक।
जहाँ खिलते थे सपनों के फूल,
वहीं बरसी मौत की साज़िश
भयानक।
“क्या नाम है?” - पहला सवाल था ,
आतंकी की आँखों में खून था। ज
“राम? श्याम?” - नाम पे सजा मिली,
हिंदू थे, बस यही वजह काफी थी।
कपड़े उतरवाए, पैंट खुलवाई,
शरीर पे धर्म की पहचान पाई।
न देखा मासूम है या जवान,
बस तिलक नहीं, पर कुल था जान।
जिसने गाया कभी वेद का गीत,
जिसने पूजा तुलसी की प्रीत।
उसे मार दिया नाम के कारण,
ये कैसा न्याय? ये कैसी रीत?
रोया पहाड़, कांपे पग- पग,
वो घाटी बनी नरसंहार की नग।
जहाँ जन्मे थे कश्यप ऋषि के वंशज,
आज वहाँ बहा सनातन का रज।
ना कोई विरोध, ना कोई साज़,
केवल खून और मौन आवाज़।
मीडिया चुप, शासन निठल्ला,
कश्मीर फिर बना कुर्बानी का पल्ला।
हमें अब न कैंडल, न जलूस चाहिए,
हमें गर्जता हुआ संघर्ष चाहिए।
हर सनातनी को जगना होगा,
अब और नहीं सहना होगा।
ये केवल हत्या नहीं, अपमान है,
धरती माँ का चीरहरण समान है।
अब या तो उठो, या भूल जाओ,
अपने धर्म को - मरने दो, या बचाओ।
✍️
लेखक
सामाजिक चिंतक
(हिंदू स्वाभिमान की आवाज़)
लेखक: ई. विजय तिवारी
लोकतंत्र का यह मंदिर है ,
बलिदानों से पोषित है ।
जनसेवा की दीवारें हैं ,
तीन स्तंभ सहारे हैं।।१।।
जो भरा शुद्धता से सेवक है ,
कसे कसौटी खरा रहा है ।
वही लोकतंत्र को सींचता है,
सेवा अमृत का पीता है।।२।।
लोकतंत्र वह जीवन है ,
जंता बीच से यापन है ।
शहद श्रवण दर्द जन के है ,
अमृत पान निदान जिसके है ।।३
जन सेवा संवाद की शक्ति ,
लग जाती है जिनको भक्ति।
मिलती है जिससे शक्ति ,
जीवन खुशबू से भर देती ।।४
कार्य बसा हृदय है जिसके ,
जो आश्रितों के दर्द को समझे ।
जीवन दान लोकतंत्र को देते ,
जनमानस चलता उसके पीछे।।५
हृदय प्रफुल्लित से जो सेवक है,
गंगा नीर सी नियती है ।
जन सेवा वह सिंधु है ,
गंगा स्वयं मिलती जिसमे है।।६
पद पैसौं पर जो न गिरा ,
लालच न रही ,न स्वार्थ रहा ।
जन पीड़ा हरण हृदय बसा,
यश न उसका फीका पड़ा ।।७
न भ्रष्टाचार अगोचर रहा ,
न विषय भोग तन पर रहा ।
मुख मौन तन लीन रहा ,
जनसेवा ही सर्वोपरि धर्म रहा।।८।।
अपना पराया ना भेद रहा ,
प्रांत क्षेत्र सब एक रहा ।
नर -नारी सम्मान बसा ,
नेता वही सर्बोत्तम रहा ।।९।।
आंखों में आशा पढ़ लेता ,
उन्नति का राग भर देता ।
गरीबों की आंखों को पढ़ते ,
आशा पर खरे उतरते रहते ।।१०।।
ऐसे लोकतंत्र को जो है समझता ,
जन-जन के दिल में बसता ।
जननायक सा पुकारे जाते ,
दुनिया को भी राह दिखाते ।।११।।
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वाराणसी : लालपुर-पांडेपुर क्षेत्र में एक युवती के साथ हुए जघन्य अपराध ने पूरे शहर को दहला दिया है। लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि राज्य में कानून-व्यवस्था से कोई खिलवाड़ नहीं कर सकता।
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस प्रशासन सक्रिय हो गया और महज कुछ घंटों के भीतर मुख्य आरोपी दानिश समेत छह आरोपियों को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति के तहत अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा न जाए।
मुख्य आरोपी दानिश समेत छह आरोपी हिरासत में
पुलिस सूत्रों के अनुसार, इस शर्मनाक घटना में शामिल मुख्य आरोपी दानिश और उसके साथी युवती को बहला-फुसलाकर अपने जाल में फंसाए थे। शुरुआती जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि यह एक सुनियोजित साजिश थी, जिसे अंजाम देने वालों को किसी प्रकार की रियायत नहीं दी जाएगी।
बेटियों की सुरक्षा सर्वोपरि: सरकार की सख्त नीति
योगी सरकार की ओर से महिला सुरक्षा के लिए चलाए जा रहे अभियानों जैसे मिशन शक्ति, 1090 महिला हेल्पलाइन, महिला थानों की स्थापना और सड़क पर सक्रिय एन्टी रोमियो स्क्वॉड जैसे प्रयास पहले ही राज्य में महिला अपराधों पर अंकुश लगाने में सफल रहे हैं। इस मामले में भी सरकार की तत्परता और सख्त कार्रवाई ने यह दिखा दिया कि बेटियों के साथ अन्याय करने वालों को किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।
कानून सबके लिए बराबर: कोई जाति या मजहब नहीं देखती सरकार
प्रदेश सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अपराधियों की जाति, मजहब या सामाजिक पृष्ठभूमि उनके लिए ढाल नहीं बन सकती। दानिश जैसे अपराधियों को जल्द से जल्द सख्त से सख्त सजा दिलाने का संकल्प प्रदेश प्रशासन ने दोहराया है।
सख्ती का असर: समाज में बढ़ा भरोसा
इस त्वरित कार्रवाई से आमजन में न्याय प्रणाली के प्रति विश्वास मजबूत हुआ है। नागरिकों ने पुलिस की तत्परता और सरकार की सख्त नीति की सराहना की है, जिससे साफ है कि प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है।
अगर आप चाहें तो इस खबर को टीवी स्क्रिप्ट, सोशल मीडिया पोस्ट या डिबेट पॉइंट्स के रूप में भी तैयार कर सकता हूँ।
सुल्तानपुर : रामनवमी के पावन पर्व पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के राष्ट्रीय कला मंच द्वारा एक भव्य धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जिला संयोजक तेजस्व पांडेय ने परिषद कार्यालय पर कन्याओं का विधिवत पूजन कर उन्हें देवी स्वरूप मानते हुए श्रद्धा, सम्मान और स्नेह अर्पित किया।
कार्यक्रम के दौरान कन्याओं को अन्न, वस्त्र, फल और उपहार भेंट किए गए। पूजन उपरांत भजन-कीर्तन और प्रसाद वितरण भी किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं, क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं एवं समाजसेवियों ने भाग लिया।
अपने उद्बोधन में तेजस्व पांडेय ने कहा—
"नारी शक्ति का सम्मान हमारी सनातन संस्कृति की आत्मा है। रामनवमी केवल भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव की स्मृति नहीं, बल्कि मर्यादा, सेवा और आदर्श जीवन मूल्यों की प्रेरणा का पर्व है।"
कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख लोग:
प्रांत कार्यकारिणी सदस्य: अमन राठौर
तहसील संयोजक: रूपेश यादव
सक्रिय कार्यकर्ता: अभय सिंह, एकांश मिश्र, आदित्य, शिखर, सत्या, ओमनगर के अन्य ABVP कार्यकर्ता
इस आयोजन को समाज में नारी सम्मान एवं सनातन मूल्यों के पुनर्स्थापन की दिशा में एक सार्थक पहल माना जा रहा है। ABVP के इस प्रयास की नगरवासियों ने भूरी-भूरी प्रशंसा की।
सुलतानपुर, कुशभवनपुर: इस बार कुशभवनपुर की होली न सिर्फ उल्लास और भक्ति का संगम होगी, बल्कि स्वदेशी अपनाने और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देगी। भगवान नरसिंह की भव्य शोभायात्रा के साथ स्वदेशी प्राकृतिक होली का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें केवल प्राकृतिक रंग, गुलाल और फूलों की पंखुड़ियों का प्रयोग किया जाएगा। होलिकोत्सव समिति, कुशभवनपुर ने सभी नगरवासियों से परंपरागत और स्वदेशी तरीकों से होली खेलने की अपील की है।
इस वर्ष की होली विशेष होगी, क्योंकि इसमें रासायनिक रंगों की जगह पूरी तरह से प्राकृतिक गुलाल और फूलों का उपयोग किया जाएगा। यह पहल स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए की गई है। आयोजन समिति ने बताया कि इस प्रयास से न केवल भारतीय संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि लोगों को शुद्ध और सुरक्षित होली का अनुभव भी मिलेगा।
भगवान नरसिंह की शोभायात्रा इस भव्य आयोजन का प्रमुख आकर्षण होगी। शोभायात्रा में धार्मिक झांकियां, भजन-कीर्तन, पारंपरिक वाद्ययंत्रों की ध्वनि और भक्तों का विशाल समूह नगर में दिव्यता का संचार करेगा। नगरवासी पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ होली खेलकर अपनी आस्था प्रकट करेंगे।
होलिकोत्सव समिति ने सभी नगरवासियों से आग्रह किया है कि वे इस बार रासायनिक रंगों का त्याग कर स्वदेशी और प्राकृतिक विकल्प अपनाएं। यह आयोजन भारतीय संस्कृति, परंपरा और सामाजिक समरसता को मजबूत करने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देगा।
📅 तिथि: 14 मार्च 2025 (शुक्रवार)
⏰ समय: सुबह 8:00 बजे
📍 स्थान: चौक घंटाघर, सुलतानपुर
नगर में इस अनोखे आयोजन को लेकर भक्तों और श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। आयोजकों का कहना है कि यह केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और भारतीय परंपराओं को पुनर्जीवित करने की एक पहल भी है।
आयोजक: होलिकोत्सव समिति, कुशभवनपुर
जगदीशपुर/अमेठी:
बीते 22 दिसंबर को जगदीशपुर थाना क्षेत्र के महमूदपुर गांव में प्रॉपर्टी डीलिंग के विवाद को लेकर लगभग आधा दर्जन बदमाशों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी, जिसमें अनीत सिंह को छह गोलियां लगीं और वह गंभीर रूप से घायल हो गया था। इस घटना के बाद पीड़ित के पिता की तहरीर पर पुलिस ने जानलेवा हमले की धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कर रवि उर्फ रवि शंकर पासी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।
आरोपी की ओर से अधिवक्ता हर्ष सिंह ने कोर्ट में दलील पेश करते हुए कहा कि उनके मुवक्किल को रंजिशन फंसाया गया है और उसके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं हैं। वहीं, अभियोजन पक्ष ने जमानत का कड़ा विरोध करते हुए कोर्ट से आरोपी की जमानत याचिका खारिज करने का अनुरोध किया।
अपर जिला जज कक्ष संख्या 12 ने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद, विशेष रूप से अधिवक्ता हर्ष सिंह द्वारा प्रस्तुत तर्कों के आधार पर, आरोपी रवि उर्फ रवि शंकर पासी की जमानत याचिका स्वीकार कर उसकी रिहाई का आदेश दे दिया।
शुभम तिवारी
सुल्तानपुर, 12 फरवरी 2025: महान समाज सुधारक एवं धर्मपरायण शासिका अहिल्याबाई होल्कर की जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के अवसर पर नगर में भव्य समारोह आयोजित किया गया। सरस्वती शिशु मंदिर, विवेकानंद नगर में हुए इस कार्यक्रम में सांस्कृतिक झांकियों और विचार गोष्ठी के माध्यम से अहिल्याबाई के जीवन और उनके योगदान को याद किया गया।
सीएमपी डिग्री कॉलेज, प्रयागराज के एसोसिएट प्रोफेसर एवं काशी प्रांत के सह प्रांत कार्यवाह डॉ. बिहारी ने कहा कि शासक की नियति साफ और नीति स्पष्ट होनी चाहिए। अहिल्याबाई का सुशासन आज भी प्रेरणास्रोत है। उन्होंने बताया कि अहिल्याबाई के जीवन में सूचना तंत्र और संपर्क मजबूत थे, जिससे वह एक सफल शासक बनीं।
कार्यक्रम में डॉ. निशा प्रकाश सिंह ने अहिल्याबाई होल्कर के प्रशासनिक, सामाजिक और धार्मिक योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इतिहास में उन्हें वह स्थान नहीं मिला, जिसकी वह हकदार थीं। उन्होंने अहिल्याबाई को एक कर्तव्यनिष्ठ, दूरदर्शी और नारी सशक्तिकरण की प्रतीक बताया।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में संगीता पाल उपस्थित रहीं। इस दौरान रामराजी सरस्वती बालिका इंटर कॉलेज की छात्राओं द्वारा अहिल्याबाई होल्कर के जीवन पर आधारित भव्य झांकी प्रस्तुत की गई, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। झांकी में अहिल्याबाई के शासनकाल, धर्मपरायणता और समाज सुधार कार्यों को प्रभावी रूप से प्रदर्शित किया गया।
इसके अलावा, समारोह में आयोजित प्रतियोगिताओं में स्थान प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को मेडल और प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर संगीता पाल ने विजेताओं को सम्मानित करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को ऐसे महान व्यक्तित्वों से प्रेरणा लेकर समाज कल्याण के कार्य करने चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन अजय कुमार तिवारी ने किया। इस अवसर पर विभाग प्रचारक श्रीप्रकाश जी, जिला प्रचारक आशीष जी, विभाग संघ चालक अरुण कुमार सिंह, अमर पाल सिंह, डॉ. रमाशंकर मिश्रा, डॉ. तारा सिंह, डॉ. विनोद कुमार सिंह, डॉ. तूलिका गुप्ता, आलोक कुमार आर्य सहित सैकड़ों गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
समारोह समिति ने नगरवासियों से आह्वान किया कि वे अहिल्याबाई होल्कर के जीवन मूल्यों को अपनाते हुए समाज में समरसता और सेवा की भावना को बढ़ावा दें। नगरवासियों ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बताते हुए भविष्य में भी ऐसे प्रेरणादायक कार्यक्रमों के आयोजन की मांग की।
दोस्तपुर: बीते रविवार की शाम कस्बे से सटे दोस्तपुर देहात के गाटा संख्या 498 में जेसीबी टैक्टर से अबैध मिट्टी खनन का कार्य चल रहा था। यह जमीन एक काश्तकार की बताई जा रही है। काश्तकार के पुत्र प्रवीण तिवारी ने मौके पर पहुंचकर मिट्टी खोदने का विरोध किया और जेसीबी चालक से खनन का परमिशन मांगा। जब चालक ने कोई जवाब नहीं दिया और उसने जेसीबी गाड़ी लेकर भागने की कोशिश की।
मौके पर मौजूद लोगों ने चालक को रोकने का प्रयास किया और तत्काल थाने पर सूचना दी। इसके बाद, भाग रही जेसीबी को नेमपुर रोड पर कामतागंज बाजार मोड़ के पास पकड़ने की कोशिश की गई, लेकिन ड्राइवर गाड़ी खड़ी कर फरार हो गया।
पीड़ित की सूचना पर खनन विभाग सुल्तानपुर, नायब तहसीलदार कादीपुर और राजस्व निरीक्षक मय लेखपाल मौके पर पहुंचे। उन्होंने खोदी गई जमीन का माप लिया और जेसीबी गाड़ी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की। चालक द्वारा गाड़ी की चाभी लेकर फरार होने के कारण जेसीबी को वहीं छोड़ दिया गया। विभागीय कार्रवाई के बाद राजस्व विभाग और खनन अधिकारी वहां से रवाना हो गए।
इस दौरान मौजूद पुलिस कर्मियों द्वारा जे सी बी मशीन की सुपुर्दगी नहीं ली गयी, उनके द्वारा कहा गया कि जब जे सी बी को खनन अधिकारी थाने में लाकर सीज करेंगे तभी पुलिस सुपुर्दगी ले पाएगी।
प्रयागराज: महाकुंभ 2025 में जहां लाखों श्रद्धालु आस्था और भक्ति के लिए संगम नगरी पहुंचे हैं, वहीं सेक्टर छा में स्थित सच्चा डेरा आश्रम के महंत मनोज ब्रह्मचारी जी ने सेवा और करुणा की ऐसी मिसाल पेश की है, जो हर किसी के दिल को छू गई। कड़ाके की ठंड में बाहर सो रहे श्रद्धालुओं को देखकर ब्रह्मचारी जी का हृदय पिघल गया, और उन्होंने अपने निजी कक्ष को उनके ठहरने के लिए खोल दिया।
ब्रह्मचारी जी का कहना है, "सेवा ही सच्चा धर्म है। महाकुंभ में *आने वाले श्रद्धालु भगवान के रूप होते हैं। जब मैंने इन्हें ठंड में कांपते देखा, तो मेरा मन विचलित हो गया। उन्हें अपने कक्ष में जगह देना मेरा कर्तव्य था।"
सच्चा डेरा आश्रम में न केवल रहने की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, बल्कि वहां आने वाले श्रद्धालुओं को गर्म कंबल, चाय और भोजन भी दिया जा रहा है। महाराज जी ने अपना कमरा त्यागकर खुद साधारण कुटिया में रहना शुरू कर दिया ताकि ठंड में परेशान लोगों को शरण दी जा सके।
श्रद्धालुओं ने महाराज जी के इस सेवा भाव की जमकर प्रशंसा की। एक श्रद्धालु ने भावुक होकर कहा,"जब ठंड में कांप रहे थे और कहीं भी रहने की जगह नहीं थी, तब महाराज जी ने हमें अपने कमरे में बुलाकर जगह दी। उनका यह कदम हमारे लिए किसी देवता के आशीर्वाद जैसा है।"
महाराज जी की इस पहल ने महाकुंभ में आए हजारों श्रद्धालुओं को प्रेरणा दी है। सच्चा डेरा आश्रम का यह कदम केवल आस्था का नहीं, बल्कि मानवता और सेवा का संदेश भी दे रहा है। ब्रह्मचारी जी के इस कार्य ने यह सिद्ध कर दिया कि एक सच्चा संत वही है, जो केवल उपदेश नहीं देता, बल्कि अपने कर्मों से दूसरों की मदद कर दुनिया को प्रेरणा देता है।
महाकुंभ के इस अद्भुत आयोजन में सच्चा डेरा आश्रम का नाम श्रद्धालुओं के बीच उनकी सेवा भावना के लिए गूंज रहा है। महाराज जी ने यह साबित कर दिया कि करुणा और सेवा ही सबसे बड़ी साधना है।
नई दिल्ली। विश्व हिंदू परिषद, दिल्ली प्रांत द्वारा मकर संक्रांति के अवसर पर सामाजिक समरसता अभियान का आयोजन किया गया। इस अभियान के अंतर्गत तेलंगाना के प्रख्यात संत शंकर स्वामी ने दिल्ली में विभिन्न समुदायों के लोगों से संपर्क कर सामाजिक समरसता और समानता के महत्व पर जोर दिया।
संत शंकर स्वामी ने बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए कहा कि जाति के आधार पर बनी सामाजिक संरचना से न तो देश का भला हो सकता है और न ही समाज का। उन्होंने एकजुट और समतामूलक समाज की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने अपने संदेश में कहा, "हिन्दव: सोदरा: सर्वे, न हिन्दू पतितो भवेत्। मम दीक्षा हिन्दू: रक्षा, मम मंत्र: समानता।" अर्थात, सभी हिंदू भाई-भाई हैं, और किसी भी हिंदू को पतित नहीं होना चाहिए। मेरी दीक्षा हिंदू रक्षा और मेरा मंत्र समानता है।
इस दौरान संत शंकर स्वामी ने समाज के हर वर्ग को आपसी भेदभाव छोड़कर एकजुट होकर कार्य करने का आह्वान किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया और सामाजिक समरसता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।
विश्व हिंदू परिषद के इस प्रयास को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है, और समाज में समानता और एकता की भावना को मजबूत करने की दिशा में यह एक सराहनीय कदम माना जा रहा है।
सुल्तानपुर। कुंभ जैसे विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन को स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इस बार एक ऐतिहासिक पहल की है। संघ ने पूरे देश में एक अभियान चलाकर धातु की थालियां और कपड़े के थैले एकत्र किए और अब इन्हें कुंभ मेले में श्रद्धालुओं के बीच वितरित कर रहा है। यह प्रयास न केवल मां गंगा की स्वच्छता बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दे रहा है।
संघ का राष्ट्रीय अभियान: थाली और थैला संग्रहण
आरएसएस ने देशभर में अपने स्वयंसेवकों के माध्यम से "हरित कुंभ" के उद्देश्य को साकार करने के लिए एक अनूठा अभियान चलाया। इस अभियान में लाखों परिवारों ने अपनी थाली और थैले दान किए। कुंभ मेले में ये थालियां और थैले निःशुल्क वितरित किए जा रहे हैं ताकि श्रद्धालु प्लास्टिक और डिस्पोजेबल सामग्री का उपयोग न करें।
सुल्तानपुर के विभाग प्रचारक श्री प्रकाश जी ने बताया, "यह पहल केवल एक आयोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में स्वच्छता और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी की भावना को जाग्रत करने का प्रयास है।"
हरित कुंभ का संदेश: प्लास्टिक मुक्त आयोजन
इस अभियान का उद्देश्य कुंभ को प्लास्टिक मुक्त बनाना है। श्रद्धालुओं को वितरित किए गए थालियां और थैले उन्हें पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। संघ ने इस अभियान के जरिए यह भी सुनिश्चित किया है कि इस पवित्र आयोजन से कोई ऐसा कचरा न पैदा हो, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए।
संघ के स्वयंसेवक न केवल थाली और थैले बांट रहे हैं, बल्कि मां गंगा की स्वच्छता बनाए रखने के महत्व पर भी जागरूकता फैला रहे हैं। श्रद्धालुओं को यह बताया जा रहा है कि गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर है। इसे स्वच्छ और पवित्र रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
श्री प्रकाश जी ने कहा, "हम चाहते हैं कि हर व्यक्ति मां गंगा को स्वच्छ रखने और पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे। यह पहल भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और सुंदर पर्यावरण सुनिश्चित करने की दिशा में हमारा प्रयास है।"
इस पहल का प्रभाव न केवल कुंभ तक सीमित है, बल्कि यह पूरे देश में पर्यावरण और स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने का माध्यम बन रहा है। सुल्तानपुर से लेकर देश के हर कोने तक संघ के स्वयंसेवकों ने यह दिखाया है कि सामूहिक प्रयासों से बड़े बदलाव संभव हैं।
आरएसएस का थाली और थैला अभियान कुंभ मेले को स्वच्छ, हरित और पवित्र बनाने की दिशा में एक अनुकरणीय प्रयास है। यह पहल दिखाती है कि यदि हम सभी छोटी-छोटी आदतों में बदलाव करें, तो पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता के बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। मां गंगा की स्वच्छता और कुंभ की पवित्रता बनाए रखने के इस प्रयास को हर व्यक्ति को अपनाना चाहिए, ताकि यह संदेश पूरे समाज में गहराई तक पहुंचे।
सुल्तानपुर, 11 जनवरी: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 250 स्वयंसेवकों का दल आज प्रयागराज महाकुंभ 2025 में सेवा कार्यों के लिए सुल्तानपुर से रवाना हुआ। इस अवसर पर संघ के विभाग प्रचारक श्री प्रकाश जी और जिला प्रचारक आशीष जी ने स्वयंसेवकों को शुभकामनाएँ देकर रवाना किया। यह दल 18 जनवरी तक महाकुंभ में विभिन्न सेवा कार्यों में अपना योगदान देगा।
संघ की सेवा परंपरा को निभाएंगे स्वयंसेवक
महाकुंभ जैसे विशाल धार्मिक आयोजनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सेवा परंपरा वर्षों से एक आदर्श रही है। इस बार भी सुल्तानपुर से 250 स्वयंसेवक स्वच्छता, भीड़ प्रबंधन, यातायात व्यवस्था और श्रद्धालुओं की सहायता के कार्यों में जुटेंगे।
प्रेरणा और अनुशासन का संदेश
इस अवसर पर विभाग प्रचारक श्री प्रकाश जी ने कहा, "महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सेवा, समर्पण और अनुशासन का प्रतीक है। स्वयंसेवकों का यह योगदान राष्ट्र और समाज के लिए एक प्रेरणा बनेगा।"
जिला प्रचारक आशीष जी ने स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि संघ के स्वयंसेवक अपने अनुशासन और सेवा भावना से महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं को हर संभव सहायता प्रदान करेंगे।
स्वयंसेवकों के रवाना होने से पहले एक विशेष विदाई समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने स्वयंसेवकों को महाकुंभ के महत्व और उनकी जिम्मेदारियों के बारे में बताया। इस दौरान स्वयंसेवकों ने संघ के गीत और घोष के माध्यम से अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।
महाकुंभ में संघ की भूमिका
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक मेला क्षेत्र में अलग-अलग स्थानों पर अपनी सेवाएँ देंगे। वे न केवल श्रद्धालुओं को मार्गदर्शन करेंगे, बल्कि जरूरत पड़ने पर उन्हें चिकित्सा सहायता और अन्य सुविधाएँ भी उपलब्ध कराएँगे।
यह सेवा कार्य न केवल सुल्तानपुर जिले का गौरव है, बल्कि महाकुंभ में संघ की सेवा और समर्पण की मिसाल भी पेश करेगा।
सुल्तानपुर: आज प्रवासी भारतीय दिवस उन महान व्यक्तित्वों को सम्मानित करने का अवसर है, जिन्होंने विदेश में रहते हुए भी भारत का नाम रोशन किया। ऐसे ही एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं डॉ. योगेश श्रीवास्तव, जिनकी कहानी मेहनत, लगन और भारतीय मूल्यों की मिसाल है।
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के पंचरस्ता क्षेत्र में एक साधारण परिवार में जन्मे डॉ. योगेश के पिता, श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव, 400 केवी बिजली विभाग में कार्यरत थे और 2006 में सेवानिवृत्त हुए हैं। डॉ. योगेश की प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती विद्या मंदिर, सुल्तानपुर में हुई। एक छोटे से शहर के स्कूल में पढ़ते हुए भी उनकी आंखों में बड़े सपने थे। विज्ञान के प्रति उनकी रुचि और पढ़ाई के प्रति समर्पण ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
अपने सपनों को पूरा करने के लिए डॉ. योगेश ने बायोटेक्नोलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल की और फिर चीन की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ऑफ चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज से पीएचडी पूरी की। उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय ने उन्हें अमेरिका तक पहुंचाया, जहां वे आज एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर, टेक्सास में पोस्टडॉक्टरल फेलो के रूप में कार्यरत हैं।
डॉ. योगेश का शोध मुख्य रूप से न्यूरोसाइंस और कैंसर अनुसंधान पर केंद्रित है। उन्होंने हेजहॉग सिग्नलिंग पाथवे पर गहन अध्ययन किया है, जो दर्द प्रबंधन और न्यूरॉन संरचना को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उनके शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रकाशित हो चुके हैं और वैज्ञानिक समुदाय में सराहे गए हैं।
भारतीय संस्कृति के संवाहक
विदेश में रहकर भी डॉ. योगेश अपने भारतीय मूल्यों और संस्कृति को नहीं भूले। वे हमेशा भारतीय त्योहारों और सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रहते हैं। उनका कहना है, "भारत की मिट्टी से जो संस्कार हमें मिले हैं, वे हमारी पहचान को हमेशा जिंदा रखते हैं। जहां भी जाऊं, मैं भारत का गौरव बनाए रखने का प्रयास करता हूं।"
डॉ. योगेश को उनकी उपलब्धियों के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें 2023 का डोडी पी. हॉन अवार्ड और 2018 का ग्वांगझोउ इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिसिन एंड हेल्थ द्वारा उत्कृष्ट छात्र पुरस्कार शामिल हैं। उनकी मेहनत और लगन हर उस युवा के लिए प्रेरणा है, जो सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े सपने देखने की हिम्मत करता है।
डॉ. योगेश का संदेश
डॉ. योगेश हमें यह सिखाते है कि अगर इरादे मजबूत हों और मेहनत का साथ हो, तो किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल की जा सकती है। सुल्तानपुर के छोटे से कस्बे से शुरू होकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचने का उनका सफर हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।
प्रवासी भारतीय दिवस पर डॉ. योगेश जैसे व्यक्तित्वों को याद करना इस बात का प्रमाण है कि भारत के संस्कार और शिक्षा न केवल देश के भीतर, बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ रहे हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सपने सिर्फ देखे नहीं जाते, पूरे भी किए जाते हैं।
महाराष्ट् मुलुंड :विश्व हिंदू परिषद (VHP) के सामाजिक समरसता अभियान के तहत मुलुंड में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में तेलंगाना संत परिषद के अध्यक्ष स्वामी शंकर जी ने 180 दलित समुदाय की महिलाओं का पाद पूजन कर उन्हें सम्मानित किया।
कार्यक्रम में दलित महिलाओं को साड़ी, लक्ष्मी जी की मूर्ति और तुलसी माला भेंट की गई। स्वामी जी ने स्वयं महिलाओं का पूजन कर समाज में समानता और समरसता का संदेश दिया।
समरसता और एकता का संदेश
इस अवसर पर स्वामी शंकर जी ने कहा, "हमारा उद्देश्य समाज में भेदभाव को समाप्त कर एक समरस और निष्पक्ष भारत का निर्माण करना है। यह आयोजन सभी वर्गों को एक मंच पर लाने का प्रयास है।"
सामाजिक सुधार की दिशा में कदम
VHP के इस आयोजन को समाज में समानता और समरसता के प्रचार-प्रसार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया गया। स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुओं ने इस पहल की सराहना करते हुए इसे समाज सुधार के लिए प्रेरणादायक बताया।
कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित रहे और स्वामी शंकर जी के प्रेरणादायक संदेश को सुनकर भावविभोर हो गए।
मुलुंड, महाराष्ट्र। विश्व हिंदू परिषद, घाट कोपर प्रभाग, मुलुंड जिला, द्वारा सामाजिक समानता और भेदभाव मुक्त भारत के निर्माण के उद्देश्य से समरसता यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। यह यात्रा समाज के सभी वर्गों के बीच समानता और सम्मान की भावना को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित है।
माँ शक्ति पूजा और दलित महिलाओं का सम्मान
कार्यक्रम में, परम पूज्य श्री शंकर स्वामीजी के सान्निध्य में 151 दलित महिलाओं का पद पूजन एवं सम्मान किया जाएगा। यह आयोजन सामाजिक समरसता का प्रतीक बनकर समाज में सकारात्मक बदलाव का संदेश देगा।
कार्यक्रम का विवरण
सामाजिक परिवर्तन की दिशा में एक कदम
विश्व हिंदू परिषद ने इस कार्यक्रम को समाज के सभी वर्गों को जोड़ने और उन्हें समान अधिकार और सम्मान दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है। संगठन का उद्देश्य सामाजिक भेदभाव को समाप्त कर एक निष्पक्ष और समरस भारत का निर्माण करना है।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु और गणमान्य व्यक्तियों के शामिल होने की उम्मीद है। यह आयोजन समाज में समानता और एकता का संदेश देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका
निभाएगा।
वाराणसी। शिक्षा के क्षेत्र में समर्पण और उत्कृष्टता का प्रतीक माने जाने वाले डॉ. अजय कुमार सिंह ने 7 जनवरी 2025 को अंतर विश्वविद्यालय शिक्षक शिक्षा केंद्र, वाराणसी में बतौर आचार्य (प्रोफेसर) पदभार ग्रहण किया। शिक्षा में अपने गहन अध्ययन, शोध और मार्गदर्शन के लिए पहचाने जाने वाले डॉ. सिंह ने इस अवसर पर कहा कि वे शिक्षा में नवाचार और शोध को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
डॉ. अजय कुमार सिंह ने बीए, बीएड और एमएड जैसी प्रतिष्ठित डिग्रियां काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से प्राप्त कीं। बीएचयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से शिक्षा प्राप्त करना उनकी विद्वता और शिक्षा के प्रति समर्पण को दर्शाता है। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और शिक्षा के गहन अध्ययन एवं शोध में विशेष रुचि दिखाई।
अपने कैरियर की शुरुआत एक प्राथमिक शिक्षक के रूप में करते हुए, डॉ. सिंह ने शिक्षा के बुनियादी स्तर को समझा और बच्चों के समग्र विकास में योगदान दिया। 2010 में उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग में लेक्चरर के रूप में अपनी सेवाएं शुरू कीं। यहां उन्होंने शिक्षा के सिद्धांत और व्यवहारिक पहलुओं को छात्रों के सामने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया और छात्रों के बीच एक प्रेरणादायक शिक्षक के रूप में पहचान बनाई।
डॉ. सिंह ने शिक्षक प्रशिक्षण, शिक्षण विधियों और शैक्षिक सुधारों पर कई महत्वपूर्ण शोध किए हैं। उनकी शिक्षण शैली और गहन दृष्टिकोण ने अनेक छात्रों और शोधार्थियों को प्रेरित किया है। उन्होंने शिक्षा शास्त्र पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें और शोध पत्र प्रकाशित किए हैं, जो शिक्षा जगत में सराहे गए हैं।
अंतर विश्वविद्यालय शिक्षक शिक्षा केंद्र में आचार्य पद ग्रहण करने के साथ ही डॉ. अजय कुमार सिंह ने शिक्षा के क्षेत्र में शोध, नवाचार और नई पहलों को प्रोत्साहित करने की योजना बनाई है। वे मानते हैं कि शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज के समग्र विकास का आधार है।
डॉ. अजय कुमार सिंह का जीवन सादगी, विद्वता और समर्पण का प्रतीक है। उनकी नई जिम्मेदारी न केवल शिक्षा केंद्र के लिए, बल्कि पूरे शैक्षिक क्षेत्र के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।