गाजियाबाद: जिले में अतिक्रमण को लेकर बड़े स्तर पर प्रशासनिक कार्यवाही का सिलसिला जारी है। हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने यूपी की योगी सरकार के बुलडोजर कारवाही पर टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का आशय ये रहा है कि अनावश्यक रूप से किसी का घर न तोड़ा जाए। आरोप है कि गाजियाबद जिले के एक मामले में पीड़ित के घर को गलत तरीके से गिराया गया जबकि उसी घर के बाएं- दाहिने एवं पीछे की तरफ़ के घर को प्रशासन नें किसी भी तरह से डिस्टर्ब नहीं किया।
पीड़ित का आरोप है कि किसी छुपी हुई मंशा के तहत अवैध तरीके से व्यक्तिगत लाभ लेने के लिए ऐसा किया जा रहा है।
मामला जिले के वसुंधरा सेक्टर 4 के प्रज्ञा कुंज का है। आरोप है कि यहाँ जिस तरीके से 3 मंजिल इमारत को पल भर में ही जमीदोंज कर दिया गया एवं अगल-बगल एवं पीछे के मकानों पर कोई आंच नहीं आयी शायद इसके पीछे अधिकारियों की कोई गलत नज़रिया जरूर रहा होगा।
वहीं घर टूटने के बाद पीड़ित परिवार बेघर हो गया है। सवाल ये है कि अगर ये मकान अवैध है तो सरकार एवं उसके आला अधिकारी तब कहाँ थे जब इस मकान का निर्माण हो रहा था? सवाल ये भी है कि इस मकान का नक्शा किसने पास किया? पीड़ित के दरवाजे तक रोड किसने बनाया? पीड़ित को बिजली का कनेक्शन कैसे मिल गया? इस जगह की रजिस्ट्री कैसे हुई?
अगर पीड़ित का घर अवैध जगह पर बना था तो उसको तो उसके कर्मों की सजा तो मिल गयी? पीड़ित बेघर हो गया। लेकिन रजिस्ट्री करवाने, नक्शा पास करने, बिजली का कनेक्शन करवाने एवं रोड बनाने वाले अधिकारियों पर कार्यवाही कब होगी। अगर ये अवैध निर्माण था तो निश्चित रूप से उन अधिकारियों पर कार्यवाही जरूर होनी चाहिए।
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