प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन?

प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन?

By: सुरभि तिवारी |PrakashNewsOfIndia.in|
Edited: Mon, 18 May 2020; 06:25:00 PM

चीन के वुहान शहर से फैलने वाले कोरोना वायरस नें (जिसे COVID- 19 का नाम दिया गया है) पूरे विश्व में कोहराम मचा रखा है। लोग इस कोरोना रूपी काल का ग्रास बनते जा रहे हैं। सभी देशों नें इस महामारी से बचने का उपाय एक दूसरे से दूरी बताया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें भी अपने देश की जनता की रक्षा के लिए 25 मार्च से पूरे देश में लॉकडाउन का आह्वान किया है।
हम सभी जानते हैं विभिन्न राज्यों से बहुत से लोग रोज़ी रोटी की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य आते जाते रहते हैं। रोजगार की तलाश में अपना गांव, घर, शहर और परिवार छोड़ जाते हैं। ध्यातव्य है कि लॉकडाउन की वजह से सभी औद्योगिक प्रक्रियाएं ठप पड़ गयी जिससे इनमें काम कर रहे मजदूरों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा। फिर शुरू हुआ इस महामारी के फ़ैलने का असली खेल। 
            रोते मजदूरों की दुर्दशा           

प्रवासी मजदूरों की दयनीय दशा
इन दिनों अपने घर लौटते मजदूरों की तस्वीरें और नंगे पांव चलते, भूख से बिलखते उनके बच्चों की दयनीय दशा देखकर शायद ही कोई अपनी आंखों में आंसू आने से रोक पाए। इन मजदूरों को किस गलती की इतनी बड़ी सजा मिल रही है? शायद ही किसी के पास इसका जबाब हो। किसी नें ठीक ही कहा है की इस पापी पेट को पालने के लिए कुछ भी करना पड़ता है। अपने रोजगार के चले जाने के बाद इन मजदूरों को एक वक्त की रोटी मिलना भी मुश्किल हो गया। जिसके चलते इन मजदूरों को अपने गांव की याद सताने लगी, फिर तो सम्पूर्ण देश में मजदूरों के झुंड के झुंड पैदल ही नजर आने लगे। वे इस महामारी के कारण सब कुछ दांव पर लगाकर घर वापस आ रहे हैं। उनके मन में यह आस है कि गांव पहुँचने के बाद उनकी सारी समस्याओं का अंत हो जाएगा। वे अपने शारीरिक कष्ट को भूलकर पैदल ही चले जा रहे हैं।
लेकिन दुःख की बात यह है कि उनमें से कितने ही अपनी मंजिल तक पहुँचने से पहले ही मौत के शिकार हो जा रहे हैं। चाहे वह महाराष्ट्र के औरंगाबाद का हादसा हो या फ़िर उत्तर प्रदेश के औरैया का हादसा हो देश के अंदर हो रहे कई अन्य हादसों में मौत नें जो तांडव मचाया है उसे हर कोई अपनी गीली आंखों से देखने को मजबूर है। इन सभी हादसों से मन इतना व्यथित होता है कि बार बार एक ही सवाल दिल और दिमाग को झकझोरता है कि क्या इनको इनके गरीब होने की सजा मिल रही है और अगर ये गरीब हैं तो इन्हें गरीब बनाया किसने? वहीं सरकारों का कहना है कि वह इन मजदूरों की वापसी के लिए प्रयास कर रही है। समझ नहीं आता कि सरकारें कुछ करती भी हैं या सिर्फ कहती ही हैं, और अगर करती भी हैं तो प्रशासन में कौन सी ऐसी कमियां हैं जिसके चलते इन मजदूरों के पैदल पलायन पर रोक नही लग पा रही है।
प्रशासन की कमियों का सबसे ताजा उदाहरण औरंगाबाद हादसा ही है। क्या तैनाती पर लगे पुलिसकर्मियों को यह पैदल मजदूर आते नहीं दिखे? अगर दिखे तो उन्होंने रोका क्यों नहीं? इन मजदूरों को रोका गया होता और इनके जाने का उचित प्रबंध किया गया होता तो यह हादसा होता ही ना उत्तर प्रदेश के औरैया में 25 मजदूरों की मौत भी प्रशासन की लापरवाही उजागर करती है।
क्या है समस्या का समाधान?
राज्यों की सरकारों ने संकट के निवारण के लिए कई महत्वपूर्ण एवं आवश्यक कदम उठाए हैं जैसे कि रास्तों में जगह-जगह कैम्पों की व्यवस्था की गई है। जिसमें मजदूरों के रहने और भोजन की व्यवस्था की गई है। पैदल ही मजदूरों के पलायन पर रोक के लिए राज्य की सरकारों ने अपने राज्य के मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनों और बसों की व्यवस्था की। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए मास्क का वितरण किया जा रहा है। इन मजदूरों की रोजी-रोटी की व्यवस्था के लिए उनके ही राज्य में रोजगार की व्यवस्था की जा रही है।

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