प्रकाश न्यूज़ ऑफ़ इंडिया |PrakashNewsOfIndia.in|
Last Updated: Tue, 09 Jun 2020; 10:00:00 PM
सुलतानपुर: स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया नें मांग दिवस के अवसर पर आज मंगलवार को विभिन्न मांगों को लेकर कलेक्ट्रेट में मुख्यमंत्री को सम्बोधित ज्ञापन सौपा. मांग दिवस की अगुवाई करते हुए प्रदेशाध्यक्ष विवेक विक्रम सिंह ने बताया कि
वैश्विक महामारी कोविड-19 का असर प्रत्यक्ष रूप से हमारी शिक्षा पर पड़ा है. अकादमिक सत्र बीच में ही रुक जाने से पाठ्यक्रम का एक अच्छा ख़ासा हिस्सा छूट गया. उसकी भरपाई के लिए कुछ संस्थानों ने ऑनलाइन कक्षाओं को एक विकल्प के रूप में लिया. लेकिन सारे विद्यार्थियों तक डिजिटल संसाधनों और अच्छे इन्टरनेट की अनुपलब्धता से ऑनलाइन कक्षाएं महज़ औपचारिकता तक सिमट रह गयी. जो संस्थान औपचारिकतावश किसी तरह कुछ कक्षाएं चला भी पाए थे. उनमे भी विद्यार्थियों की उपस्थित 30 से 40 प्रतिशत ही रही. छात्राओं की उपस्थिति और भी कम रही. ऑनलाइन कक्षाएं शिक्षा के समावेशी लक्षण से इतनी दूर हैं कि बड़े पैमाने पर छात्र-छात्राएं इससे छूट गए. ऑनलाइन कक्षाओं से छूट गए छात्र-छात्राओं की समीक्षा तक ढंग से नहीं की गई. सरकार को यह समझना होगा कि फेसबुक और व्हाट्सऐप चलाना तथा डिजिटल लिटरेसी दो अलग अलग चीज़ें है. यही वजह है कि आधे से ज़्यादा अध्यापक खुद उन प्लेटफार्म और ऐप्लिकेशन का ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं और लिंक भेज-भेज कर कक्षाओं की गिनती करने पर मजबूर हैं.
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सुलतानपुर: स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया नें मांग दिवस के अवसर पर आज मंगलवार को विभिन्न मांगों को लेकर कलेक्ट्रेट में मुख्यमंत्री को सम्बोधित ज्ञापन सौपा. मांग दिवस की अगुवाई करते हुए प्रदेशाध्यक्ष विवेक विक्रम सिंह ने बताया कि
वैश्विक महामारी कोविड-19 का असर प्रत्यक्ष रूप से हमारी शिक्षा पर पड़ा है. अकादमिक सत्र बीच में ही रुक जाने से पाठ्यक्रम का एक अच्छा ख़ासा हिस्सा छूट गया. उसकी भरपाई के लिए कुछ संस्थानों ने ऑनलाइन कक्षाओं को एक विकल्प के रूप में लिया. लेकिन सारे विद्यार्थियों तक डिजिटल संसाधनों और अच्छे इन्टरनेट की अनुपलब्धता से ऑनलाइन कक्षाएं महज़ औपचारिकता तक सिमट रह गयी. जो संस्थान औपचारिकतावश किसी तरह कुछ कक्षाएं चला भी पाए थे. उनमे भी विद्यार्थियों की उपस्थित 30 से 40 प्रतिशत ही रही. छात्राओं की उपस्थिति और भी कम रही. ऑनलाइन कक्षाएं शिक्षा के समावेशी लक्षण से इतनी दूर हैं कि बड़े पैमाने पर छात्र-छात्राएं इससे छूट गए. ऑनलाइन कक्षाओं से छूट गए छात्र-छात्राओं की समीक्षा तक ढंग से नहीं की गई. सरकार को यह समझना होगा कि फेसबुक और व्हाट्सऐप चलाना तथा डिजिटल लिटरेसी दो अलग अलग चीज़ें है. यही वजह है कि आधे से ज़्यादा अध्यापक खुद उन प्लेटफार्म और ऐप्लिकेशन का ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं और लिंक भेज-भेज कर कक्षाओं की गिनती करने पर मजबूर हैं.
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